udaipur. इस संसार में जो व्यक्ति दूसरों के अवगुण न देख कर उसमें गुणों को देखता है वह व्यक्ति ही अपनी उन्नति कर सकता है। वह व्यक्ति दूसरों के अवगुणों में अपना समय बर्बाद नहीं करता अपितु अपनी तरफ ध्यान देता है।
अपने अवगुणों का अवलोकन कर उसे दूर करने का पुरूषार्थ करता है ओर दूसरों के गुण देख कर उसे ग्रहण करता है। उक्त विचार आचार्य सुकुमालनन्दी ने सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में आयोजित प्रात:कालीन धर्मसभा में व्यक्त किये।
आचार्यश्री ने कहा कि वह सम्पूर्ण समय अपनी आत्मा को सुधारने में ही लगता है। अगर किसी की उसको बुराई दिख भी जाए तो वह उसमें भी अच्छाई देखता है और अपनी जिन्दगी को आराम से जीता है।
आचार्यश्री ने रत्नकरण्डक श्रावकाचार के 15वें श्लोक की व्याख्या करते हुए सम्यकदृष्टि का स्वरूप विस्तृत रूप से समझाया। चातुर्मास कमेटी के महामंत्री प्रमोद चौधरी ने कहा कि 9 सितम्बर रविवार को आचार्यश्री का विशेष प्रवचन होगा।