udaipur. बंद.. भारत बंद…। इसे सफल किन मायनों में कहा जाए..। स्वत: स्फूर्त बंद कहना तब ठीक होता जब जनता वास्तव में मन से इस बंद में जुड़ी होती। मजदूर की मजबूरी है कि बंद में जब काम ही नहीं होगा तो उसका आना ही व्यर्थ है।
दुकानदार जिनके लिए बंद किया गया, उनके नाम पर उदयपुर चैम्बर ऑफ कॉमर्स उदयपुर डिवीजन द्वारा निकाली गई महारैली के नाम पर गिनती के 50 व्यापारी भी एकत्र नहीं हो पाए। इस महारैली को देखकर लगा कि कहां हैं वे दुकानदार जिनके लिए उक्त बंद किया गया। बंद भी ऐसा जिसमें शहर विधायक गुलाबचंद कटारिया के सामने उदियापोल चौराहे पर आ- जा रही सरकारी और निजी बसों की हवा निकाल दी गई और रास्ता जाम कर दिया गया। और तो और बाहर से आए सरकारी अधिकारी की गाड़ी की भी हवा निकाल दी गई। उन्हें वहां से दूसरा साधन करके जाना पड़ा।
उधर महिला पदाधिकारी भी पीछे नहीं रहीं। हर बंद की तरह एकत्र होकर उदियापोल स्थित कॉम्पीलेक्स के नीचे सीढि़यों पर बैठकर जलपान करते दिखीं। शांतिपूर्ण बंद किसे कहा जाता है। जब जनप्रतिनिधि ही ऐसी असामाजिक हरकतों को शह दें तो फिर आम जनता से क्या उम्मीद की जा सकती है?
बंद से उन लोगों को कोई नुकसान नहीं हुआ जिनका रोजमर्रा की दुकानदारी से कोई काम नहीं था। नुकसान हुआ उन्हें जो दिहाड़ी पर निर्भर करते हैं। जिनके लिए रोज कुआं खोदकर रोज पानी पीना आवश्यरक है। अगर पानी पीना है तो कुआं खोदना ही होगा। जिस दिन कुआं नहीं खुदा तो पानी भी नहीं है। गाडि़यों में घूमने वाले व्यवसायियों के लिए इस बंद का मकसद सिर्फ पार्टी का अंध समर्थन ही दिखा।
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