दिगंबर जैन पर्युषण पर्व
udaipur. दिगंबर जैन समाज में पर्युषण पर्व के तहत मंगलवार को सुगंध दशमी पर्व मनाया गया। मंदिर की वेदी के सामने विशेष मंडप रचना व रंगोलियां सजाई गई। शहर के दिगंबर जैन मंदिरों, स्थानकों व उपाश्रयों में सुबह से आयोजनों की धूम रही।
साधु संतों, साध्वियों की मौजूदगी में हो रहे आयोजनों में बड़ी संख्या में समाजजन जुटे। सुबह से जैन मंदिरों में भक्तों की आवाजाही रही जो देर शाम तक जारी रही। विशेष प्रवचन भी हुए। शहर के सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में आचार्य सुकुमालनंदी, अशोकनगर उदासीन आश्रम में आर्यिका पूर्णमति माताजी, हुमड़ भवन में अभिनंदन सागर के सान्निध्य में विविध हुए। कहीं कहीं शोभायात्राएं भी निकाली गई। पूजा-अनुष्ठानों का दौर जारी रहा।
आदिनाथ भवन से. 11
आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज ने कहा कि जिस प्रकार बिना तपे खेत में फसल नहीं लगती, धूप में तपे बिना वृक्ष पर फल नहीं लगते,बिना तवे पर तपे रोटी नहीं सिकती,बिना तपे मिट्टी भी कुभ नहीं बनती,बिना तपे स्वर्ण भी शुद्ध नहीं होता ठीक उसी प्रकार बिना तपे आत्मा भी कभ शुद्ध नहीं हो सकती।
वे पर्युषण पर सुगंध दशमी के उपलक्ष में धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होनें कहा कि तप सात्विक, राजसी तथा तामसिक तीन प्रकार के होते है। इनमें से जो अहंकार पूर्वक व कषायवश जो दूसरेां की हानि के लिए किया जाता है ऐसे राजसिक व तामसिक तप आत्मशुद्धि का उत्थान नहीं करते, जो आत्मा की विश्ुद्धि के लिए किया जाय वह सात्विक तप आत्मा के उत्थान के लिए होता है।
इससे पूर्व सभी तपस्वियों द्वारा दशलक्षण महामण्डल विधान किया गया। सभी आचार्यश्री की प्रेरणा व दिव्य आशीर्वाद से दो तपस्वी द्वारा 32 उपवास, 27 श्रावकों द्वारा 16 उपवास की तपाराधना व 150 तपस्वियों द्वारा 10 उपवास की तपाराधना की जा रही है। सुंगध दशमी के उपलक्ष में आचार्यश्री के सानिध्य में सभी ने मंदिरों के दर्शन किए। दोपहर को तत्वार्थ सूत्र शिविर जगा तथा शाम को आचार्य श्री ने हजारों श्रद्धालुओं को ध्यान करवाकर सामयिक व प्रतिक्रमण करवाया। चातुर्मास समिति के महामंत्री प्रमोद चौधरी ने बताया कि 28 सितंबर की रात्रि को सभी तपस्वियों की ओर से रात्रि जागरण रखा गया है। जिसमें अनेक अतिथिगणों की उपस्थिति रहेगी।
हिरणमगरी से. 4
श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जिनालय (संघ), हिरणमगरी सेक्टर 4 द्वारा आयोजित वरघोड़ा शांतिनाथ जिनालय सेक्टर 4 से सुबह 8 बजे बड़ी धूमधाम से निकाला गया। वरघोड़े में धर्मध्वजा के साथ दो अश्वारोही, मंगल स्वर लहरियां बिखेरता हुआ बैंड, पालकी में विराजित जिनेश्वर, बग्घी में विराजित महावीर स्वामी की छवि, मंगल गीत गाती हुई महिलाओं के सिर पर सुशोभित चौदह स्वप्न, अक्षयनिधि तपस्वियों द्वारा धारित मंगल कलश एवं मुनिराजद्वय पशम-रत्न विजय एवं रत्नेश रत्न विजय की निश्रा में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने गणवेश में भाग लिया। वरघोड़ा पुन: जिनालय में पहुंचने पर परम् तपस्वी मुनिराज प्रशमरत्न विजय ने अपने सारगर्भित प्रवचन में बताया कि यदि आप अपनी आत्मा को चौरासी लक्ष जीव योनियों से मुक्त कर परम पद यानी मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं तो प्रभु महावीर द्वारा बताये गये पथ का अनुसरण करें। पर्यूषण पर्व पर तपस्या करने वालों एवं वर्षीतप आराधकों का संघ द्वारा बहुमान करने के बाद सभी श्रद्धालुओं ने स्वामी वात्सल्य का लाभ लिया।