रबर/टायर रिसाईक्लिंग पर सेमिनार
udaipur. रबर व टायर को चार विधियों से रिसाइकल किया जा सकता है लेकिन हर विधि में जन सुरक्षा, प्रकृति सुरक्षा व दूरगामी आर्थिक सुरक्षा जरूरी है। मैकेनिकल ग्राइंडिंग व क्रायोजिनिक विधियां पाइरोलाइसिस विधि से बेहतर है।
ये विचार रबर टेक्नोलोजी विभाग, विद्याभवन पॉलिटेक्निक महाविद्यालय, उदयपुर चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्रीज तथा इण्डियन रबर इंस्टीट्यूट के साझे में पॉलिटेक्निक सभागार में आयोजित परिचर्चा में उभरे। परिचर्चा के मुख्य वक्ता इण्डियन रबर इंस्टीट्यूट के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. आर. मुखोपाध्याय थे। अध्यक्षता विद्या भवन सोसायटी के अध्यक्ष रियाज तहसीन ने की।
पाइरोसिस विधि भी एक पूरवन विधि है लेकिन इसमें बहुत जरूरी हैं कि प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाली प्रदूषणकारी गैसों का उचित उपचार हो तथा बनने वाले तेल को सीधे प्रयोग में न लेकर उसका शुद्धीकरण व फिलटराईजेशन किया जाये। पाइरोलाइसिस विधि में टायर को उच्च तापक्रम पर दाब पर गलाया जाता है। इसमें उच्च स्तर की सुरक्षा जरूरी है। उदयपुर में ऐसे पाइरोलाइसिस प्लांट लगाने से पहले उनको ओक्यूपेशनल हेल्थ एण्ड सेफ्टी एडमिनिस्ट्रेशन एवं आईएसओ 14001 के मापदण्डों पर जांचा जाये। चाइना में बनने वाले कुछ पाइरोलाइसिस प्लांट इन मापदण्डों पर खरे नहीं उतरते, अत: प्लांट लगाने से पूर्व सावधानी जरूरी है। भारत सरकार पाइरोलाइसिस उद्योगों के क्लस्टर के लिए वित्तीय सहायता देती है। इस वित्तीय सहायता से प्रयोगशाला व प्रशिक्षण की स्थापना कर उत्तम गुणवत्ता के सुरक्षित व दक्ष प्लांट लगाये जा सकते हैं। विकास के लिए उद्योग जरूरी है। अत: यदि पर्यावरण मानकों पर रिसाइक्लिंग प्रक्रिया की जाती है व अपशिष्टों् का सुरक्षित निस्तारण किया जाता है तो उद्योगों का विरोध नहीं होना चाहिये।
परिचर्चा में यूसीसीआई के अध्यक्ष महेन्द्र टाया, राजस्थान चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री के उपाध्यक्ष रमेश चौधरी, कलड़वास चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री के अध्यक्ष मनोज जोशी, प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के क्षेत्रीय अधिकारी जगदीश सिंह सहित विभिन्न उद्योगपतियों, वैज्ञानिकों, पाइरोलाइसिस प्लांट संचालनकर्ताओं ने भाग लिया। संचालन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य अनिल मेहता ने किया