झील प्राधिकरण के ड्राफ्ट में भी त्रुटियां
udaipur. झील विकास प्राधिकरण के प्रस्तावित ड्राफ्ट में झील की परिभाषा ही त्रुटिपूर्ण है। इससे राजस्थान की झीलों की हजारो-लाखों पेटा भूमि झीलों से बाहर हो जाएगी। प्रस्ताव में झीलों के पर्यावरणीय सरोवर वैज्ञानी जलीय, पारिस्थितिकीय संरक्षण के कार्यों का ठीक से उल्लेख नहीं है। साथ ही संभागीय मुख्यालयों पर फंक्शनल कमेटी भी होनी चाहिये। ये विचार डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट में हुई बैठक में उभर कर आए।
बैठक की अध्यक्षता डॉ. वी. एस. दवे ने की। झील संरक्षण समिति के सहसचिव अनिल मेहता ने कहा कि न्यायालय के वर्ष 2007 में झील विकास प्राधिकरण बनाने के आदेश पर दिये। राज्य सरकार द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 5 के तहत अफसरों की एक कमेटी बना दी जबकि हमारा कहना था कि प्राधिकरण राज्य विधान सभा से स्वीकृत-पारित होना चाहिये। प्राधिकरण में राज्य के समस्त एग्रोक्लाईमेट जोन से सदस्यों व जनप्रतिनिधियों का रोटेशन होना चाहिये। साथ ही प्रस्ताव सम्भागीय मुख्यालय पर गठित होने वाली कमेटी सहित होकर राज्य मुख्यालय को जाने चाहिये तथा स्वीकृत प्रस्तावों का क्रियान्वित संभागीय कमेटी की देखरेख में होना चाहिये। ड्राफ्ट में प्राधिकरण मे ओब्जेक्टीव, सेक्शन व पॉवर पर समिति नागरिकों ने विस्तृत सुझाव दिये। यह महत्वपूर्ण राय रहीं की प्राधिकरण के अध्यक्ष मुख्यमंत्री होने चाहिये तथा सदस्य सचिव पर्यावरण विभाग के सचिव होने चाहिये। प्राधिकरण में भूजल सतही जल, पर्यावरण, सरोवर विज्ञान, क्षेत्रों के विशेषज्ञ भी होने चाहिये। संवाद के पश्चात चर्चा में डॉ. तेज राजदान, जी. पी. सोनी, इस्माईल अली दुर्गा, ओ. पी. माथुर, सुशील दशोरा, हाजी सरदार मोहम्मद, दामोदर कुमावत, अनिल रोजर्स, सोहनलाल तम्बोली आदि ने भी विचार प्रकट किये। संचालन व धन्यवाद ट्रस्ट सचिव नन्दकिशोर शर्मा ने ज्ञापित किया।