गुजरात से निकाले गए उदयपुर में लग गए पायरोलिसिस प्लान्ट
udaipur. गुजरात से निकालने और फिर राज्य में पायरोलिसिस प्लां।टों को अनुमति देने में यहां के प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने अपने मानक नियमों तक में संशोधन कर दिया। ये अलग बात है कि वे संशोधन भी अपशिष्ट व अन्य गैसीय निस्तारण बाबत स्पष्ट व्याख्या नहीं कर रहे है। अब संशोधित मानकों के आधार पर इन्हें यहां स्थापित किया जा रहा है।
जानकारी के अनुसार मण्डल ने अब तक यहां लगे प्लान्ट से किसी प्रकार की कोई सेम्पलिंग भी नहीं की है। 500 डिग्री तापमान तक इन्हें जलाने पर इमें से 85 प्रतिशत सॅालिड वेस्ट, तार, कार्बन ब्लैक तथा पायरोलिटीक ऑइल निकलता है तथा 10-15 प्रतिशत प्रदूषणकारी गैसीय निस्तारण होता है। इनमें मिथेन,कार्बन डाई ऑक्साईड,कार्बन मोनो आक्साईड, हाईड्रोजन, सल्फर डाई आक्साईड व नाईट्रस जैसी हानिकारक गैसें निकलती है जो अम्लीय वर्षा की कारक हैं। टायर जलाने से निकलने वाले ऑइल को प्रोपर तरीके से स्टोरेज करते समय यदि जरा सी चूके के कारण वह जमीन पर गिर जाए तो वह जमीन बंजर तो होगी ही, साथ ही उस क्षेत्र में अनेक प्रकार के त्वचा रोग उत्पन्न होंगे।
आबूरोड़ स्थित मावल रीको औद्योगिक क्षेत्र के अध्यक्ष गजेन्द्र नाहर ने बताया कि गुजरात बॉर्डर से मात्र आधा किलोमीटर स्थापित मावल ओद्योगिक क्षेत्र के रीको ग्रोथ सेन्टर के सेकण्ड फेस में गत 1 माह में क्षेत्र में 1-1 यूनिट आगे व पीछे प्रांरभ हो गई है। आबू रोड़ स्थित प्रदुषण नियंत्रण मण्डल ने करीब 50 प्लान्ट के पंजीकरण कर लिए है। औद्योगिक क्षेत्र में बीच रोड़ पर प्लान्ट मालिकों ने बड़े-बड़े टैंक रख लिए है। महत्वपूर्ण बात यह है कि भूखण्ड मालिकों ने सीधे रीको से जमीन नहीं खरीद कर भूखण्ड मालिकों से जमीन किराये पर लेकर ये प्लान्ट लगाये हैं। आबूरोड़ में ये प्लान्ट रात 9 से सुबह 8 बजे तक चलते हैं। इनके चलने से अन्य उद्योग यहां स्थापित नहीं हो पा रहे हैं जिससे क्षेत्र का ओद्योगिक विकास रूका हुआ है। मण्डल इन बातों को लेकर किसी प्रकार की जांच नहीं की है।
कलड़वास चैंबर ऑफ कॉमर्स एण्ड इन्डस्ट्रीज के अध्यक्ष मनोज जोशी ने बताया कि यदि ये प्लान्ट मानकों के आधार पर चले तो प्रदूषण की समस्या बन चुके टायरों के पायरोलिसिस से उपयोगी कार्बन ब्लैक,पायरोलिटीक ऑयल की प्राप्ति होगी जो विदेशी महंगी मुद्रा को बचाने में सहयोग प्रदान करेगी। पायरोलिटीक प्लान्ट मानको के आधार पर चलाते हुए पुन:चक्रण के प्लान्ट लगाये जाने चाहिए जिसे ग्रीन टेक्नोलोजी कहा जाता है। ऐसे प्लान्ट लघु उद्योगों की श्रेणी में आते हैं। यदि ये उद्योग मानकों के आधार पर एक ही स्थान पर लगे तो ये पायरोलिटीक प्लान्ट न केवल राज्य सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी करेंगे वरन् रोजगार में भी वद्धि करेंगे और राज्य के विकास में भागीदारी निभायेंगे। कम आबादी क्षेत्र में इस प्रकार के उद्योग लगाये जाने चाहिए इसमें पानी व बिजली की खपत नहीं के बराबर है। राज्य सरकार को इस प्रकार की प्रक्रिया को बढ़ावा देना चाहिए। इस प्रकार के उद्योग लगाने से राज्य में ये उद्योग ओद्योगिक परिदृश्य में उभर कर सामने आएंगे।