पूरा देश दीवाली की रंगत में रचा-बसा और खोया हुआ है। हर कोई लक्ष्मी को रिझाने में लगा है। चाहता है कैद कर लें लक्ष्मी मैया को अपनी तिजोरी में। इसके लिए क्या-क्या जतन नहीं हो रहे यहाँ-वहाँ- सभी जगह।
हर कोई चाहता है जमाने की रफ्तार और समृद्धि के अनुरूप सारे संसाधन, भौतिक सुख-सुविधाओं का अम्बार और दुनिया की ज्यादा से ज्यादा सम्पत्ति पर अपना और सिर्फ अपना ही कब्जा। जो कुछ दीख रहा है, दिखाया जा रहा है वह चकाचौंध में फब रहा है।
इस चमक-दमक को ही लक्ष्मी का रूप मानकर हर कोई लगा है लक्ष्मी पाने के फेर में। जिनके पास अपार धन-दौलत है वे भी, और जिनके पास कुछ नहीं है वे भी लक्ष्मी मैया की कृपा पाने को आतुर हैं। तरह-तरह के जतन हो रहे हैं, बिजली की इतनी घातक दमक कि आँखों की रोशनी भी शरमा जाए।
हर तरफ जबर्दस्त चकाचौंध। लक्ष्मी मैया भी घबरा जाए और उसे भी सोचना पड़े आखिर कहाँ जाए वह। लक्ष्मी को चाहने के लिए हो रहे प्रयासों के बीच यह गंभीरता से सोचना होगा कि हम किस लक्ष्य का संधान कर ये सब कर रहे हैं।
जब हम लक्ष्मी की साधना करते हैं, लक्ष्मी मैया को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं तब हमें अच्छी तरह यह समझ लेना चाहिए कि लक्ष्मी क्या है और अलक्ष्मी क्या है। क्योंकि लक्ष्मी मैया वहीं आती हैं जहां अलक्ष्मी नहीं होती।
आज जो भौतिक चकाचौंध हम चारों को देख रहे हैं वह लक्ष्मी न होकर अलक्ष्मी ही है। लक्ष्मी से संबंध सिर्फ धन का ही नहीं है, लक्ष्मी जब आती है तब चराचर जगत के उपलब्ध और दुर्लभ सम्पूर्ण प्रकार के वैभव प्रदान करती है, ऐश्वर्य देती है और जीवन आनंद से सरोबार हो जाता है।
जिसके जीवन में लक्ष्मी का प्रवेश हो जाता है उसका हर क्षण महाआनंद से भर उठता है, उसे आत्मतोष और प्रसन्नता के लिए कुछ नहीं करना पड़ता। जीवन का हर ऐश्वर्य उसे सहज ही प्राप्त होता है।
लक्ष्मी पाने के लिए पुरुषार्थ और शुचिता प्राथमिक अनिवार्य शर्त है और ऐसा होने पर ही लक्ष्मी का आगमन होता है। इसके बगैर लक्ष्मी पाने की कल्पना नहीं की जा सकती है।
जहाँ भ्रष्टाचार, काला धन, रिश्वत, हराम की कमाई, बेनामी पैसा, अपवित्र माध्यमों से आया धन, काला मन और जड़ता भरे संसाधन होते हैं वहाँ लक्ष्मी की बजाय अलक्ष्मी वास करती है और ऐसे माहौल में लक्ष्मी की दूर-दूर तक कल्पना नहीं की जानी चाहिए।
हमारे आस-पास ऐसे लोगों की भरमार है जो बड़े प्रतिष्ठित कहे जाते हैं, अकूत धन-दौलत के स्वामी हैं और भौतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है।
इन सबके बावजूद कितनों के मन में संतोष है, कितनों के चेहरों पर प्रसन्नता के भाव हैं, कितनों के पास मुस्कान बनी हुई है या कितने वो सब काम कर पाते हैं जो सामान्य आदमी हँसी-खुशी से कर लेता है और आनंद में रहता है।
इसका जवाब नकारात्मक ही आएगा। जहाँ धन-वैभव है और प्रसन्नता नहीं है वहाँ लक्ष्मी की बजाय अलक्ष्मी का निवास निश्चय मानना चाहिए। फिर अलक्ष्मी अपने साथ कितनी ही समस्याओं को लेकर आती है जो कभी व्यभिचार तो कभी बीमारियों के रूप में व्यक्तित्व को धीरे-धीरे खोखला करती रहती है। जहाँ अलक्ष्मी होगी वहाँ सारी बुराइयां होंगी ही। इसके विपरीत जिन पर लक्ष्मी मैया प्रसन्न रहती है वे हमेशा चुस्त, मस्त, प्रसन्न और संतोषी रहते हैं।
लक्ष्मी और अलक्ष्मी में फर्क करना जरूरी है। जहां अलक्ष्मी है वहाँ लक्ष्मी का आगमन कभी हो ही नहीं सकता। ऋग्वेद का श्रीसूक्त लक्ष्मी प्राप्ति का सबसे बड़ा प्रयोग है। इसका निरन्तर पाठ व जप किया जाए तो लक्ष्मी की प्रसन्नता सहज ही प्राप्त हो सकती है लेकिन इसमें भी लक्ष्मी पाने की कामना करते हुए यह भी स्पष्ट कहा गया है कि ज्येष्ठा अलक्ष्मी नष्ट हो जाए।
लक्ष्मी प्राप्ति की कामना किसे नहीं होती लेकिन यह भी अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि हम लक्ष्मी के जिन रूपों को देख कर आराधना कर रहे हैं वह लक्ष्मी नहीं है। यदि उसे ही लक्ष्मी मान लिया जाए तो ऐसी लक्ष्मी होने के बावजूद जीवन जीने का आनंद या जीवन का ऐश्वर्य क्यों नहीं है।
लक्ष्मी की आराधना करें मगर इसके लिए पुरुषार्थ को सर्वोपरि मानें, शुचिता का भाव रखें और सेवा तथा परोपकार के कामों में धन लगाएं तभी वह लक्ष्मी आपको, आपके परिवार को और आपके समस्त परिचितों को आनंद की प्राप्ति करा सकती है। अन्यथा अपने पास अनाप-शनाप रुपया-पैसा और द्रव्य होने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि उसका सदुपयोग नहीं हो पाता।
लक्ष्मी का सदुपयोग शुरू हो जाने पर दूसरों की भावना ईर्ष्या से बदल कर आशीर्वाद और दुआओं भरी हो जाती है। लक्ष्मी को स्थिर करना चाहें तो परोपकार और सेवा में इसका खर्च करें तभी लक्ष्मी बहुगुणित होने लगेगी।
– डॉ.दीपक आचार्य