शिक्षा का अर्थ है व्यक्ति के समग्र जीवन के लिए उपयोगी वह व्यावहारिक ज्ञान जिससे कि उसका जीवनयापन सरल, सहज और निरापद होने के साथ ही उपयोगी और उपलब्धिमूलक हो। उसके खुद के लिए भी, और समाज तथा क्षेत्र के लिए भी, जहाँ वह काम करता है, रहता है और आवागमन करता है।
कागजी और प्राणहीन शिक्षा का कोई अर्थ नहीं है जिसे वह बरसों तक प्राप्त कर चुकने के बाद भी जीवन में कभी प्रयोग नहीं कर पाता अथवा यों कहें कि उसके जीवन के लिए जिसकी कोई उपादेयता कभी सामने नहीं होती। मौजूदा परिप्रेक्ष्य में आज ऐसी शिक्षा की ही जरूरत है जिसमें आदमी के जीवन के सारे व्यवहार ठीक ढंग से हों तथा वह व्यक्तित्व को सुधार कर उस मुकाम पर ला पाए जहां उसे अच्छी तरह सम्पूर्णता और जीवन लक्ष्यों की प्राप्ति का मीठा अहसास हो सके।
आज की शिक्षा में इस बात पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। शिक्षा के साथ दीक्षा का समावेश होने पर ही ज्ञान की पूर्णता का अनुभव हो सकता है। शिक्षा और संस्कारों के साथ आदर्श परंपराओं का अनुसरण मिल कर ही जीवननिर्माण और सामाजिक उत्तरदायित्वों का बोध कराते हैं।
इसलिए शिक्षा का सर्वोच्च लक्ष्य जमाने की मांग के अनुरूप जीवननिर्माण के तमाम आयामों को परिपूर्णता प्रदान करने वाली शिक्षा से है और इसके लिए विद्यार्थियों को पूरी जिन्दगी के लिए काम आने वाली शिक्षा-दीक्षा की जरूरत से वाकिफ कराया जाना जरूरी है।
इसमें सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि सभी प्रकार का प्रशिक्षण और व्यवहारिक ज्ञान भी शामिल है। आज की शिक्षा को और अधिक उपादेय बनाने के लिए शिक्षालयों में इन सभी बातों पर ख़ास ध्यान दिया जाना जरूरी है। नई पीढ़ी में शिक्षा के साथ-साथ व्यावहारिक जीवन के लिए उपयोगी ज्ञान का होना नितान्त जरूरी है।
शिक्षालयों में शैक्षिक संवहन के साथ ही सामाजिक सेवा और व्यक्तित्व विकास से जुड़े विषयों पर ख़ास ध्यान दिए जाने की महती आवश्यकता को समझ कर इस दिशा में गंभीरतापूर्वक प्रयास किए जाने की जरूरत है। इसके लिए शिक्षार्थियों, शिक्षकों, अभिभावकों और हमारे शिक्षानीति निर्धारकों की भूमिका सर्वोपरि है।
आज के सभी प्रकार के विद्यार्थियों के लिए यह आवश्यक है कि वे मेधावी बनने के साथ ही समाजसेवा, राष्ट्रीय चरित्र की भावनाओं और सहकारितापूर्वक समन्वयपूर्ण विकास के मूलभूत तत्वों को आत्मसात करें। हमें गुरु की महिमा एवं आदर्श शिक्षा को समझना होगा तथा इस बात को अच्छी तरह आत्मसात करना होगा कि व्यवाहारिक शिक्षा ही समग्र जीवन निर्माण की कुंजी है।
आज जमाना अलग है। शिक्षा के कई आयामों के साथ संसार आगे बढ़ रहा है। शैक्षिक नवाचारों के मौजूदा दौर में नई पीढ़ी की क्षमताओं और मौलिक हुनर का पूरा-पूरा इस्तेमाल करते हुए उसे सामाजिक एवं आर्थिक विकास की मुख्य धारा से जोड़कर जीवन निर्माण के आदर्शों को मूर्त रूप प्रदान करना जरूरी है और इसके लिए शिक्षा जगत से जुड़े लोगों को समर्पित भाव से इन कामों को पूरा करने निष्काम भाव से आगे आना होगा।
आज शैक्षिक जगत के नूतन आयामों पर चर्चा करें तो शिक्षा क्षेत्र के विकास एवं विस्तार, गुणात्मक शिक्षा संवहन के प्रभावी कारकों, शिक्षकीय कौशल में अभिवृद्धि, शिक्षार्थियों की ग्राह्यता क्षमता में बढ़ोतरी, शिक्षा के लोकव्यापीकरण जैसे कई विषयों पर प्रभावी चिंतन की जरूरत है।
शिक्षा जगत से जुड़े लोगों का दायित्व है कि वे शिक्षा को सामाजिक लोक जागरण और बहुआयामी विकास का मुख्य जरिया बनाने के लिए अपनी सेवाओं को और अधिक गति प्रदान करें। आज कर्म के प्रति निष्ठा और दायित्व बोध की भावनाओं को भी देखना, समझना व अपनाना होगा। इसके लिए आज हर साामजिक, परिवेशीय एवं राजकीय कार्य को समाज और देश की सेवा की भावना से करने की जरूरत है।
शिक्षा क्षेत्र में आशातीत सुधार और गुणवत्ता विस्तार के लिए शिक्षकों के मानस में मनोवैज्ञानिक बदलाव जरूरी है। यह कार्य और अधिक आसान हो सकता है कि यदि शिक्षा से संबंधित सभी प्रकार के प्रशिक्षणों में शिक्षकों को गुणवत्ता के मापदण्डों से परिचित कराये जाने पर जोर दिया जाए। इससे शिक्षकीय गुणात्मक स्तर का ग्राफ बढ़ोतरी पा सकेगा और बेहतर प्रशिक्षण का उपयोग नई पीढ़ी के भविष्य को संवारने में हो सकेगा।
बहुआयामी सामाजिक परिवर्तन के लिए शिक्षकों को अपने बंधे बंधाए दायरों से ऊपर उठकर गुरुत्व का सामर्थ्य जगाना होगा। आज शिक्षा के क्षेत्र में कई संस्थाएं काम कर रही हैं। शिक्षा से सम्बद्ध तमाम समानधर्मा संस्थाओं के मध्य समन्वय सेतु को और अधिक मजबूत बनाने और पारस्परिक अन्तः संबंधों की प्रगाढ़ता भी जरूरी है।
इन संस्थाओं में समन्वय और पारस्परिक गतिविधियों में एक-दूसरे की पूर्ण तथा आत्मीय भागीदारी होना भी जरूरी है। शिक्षा सामाजिक निर्माण एवं राष्ट्रीय अस्मिता के लिए रीढ़ है और इसे सुदृढ़ बनाने के लिए हर स्तर पर कोशिशें जरूरी हैं। यह समाज का भी दायित्व है और शिक्षा से जुड़े लोगों का भी।
डॉ. दीपक आचार्य