लोक व अभिजात्य शैली का समागम: पाषाण, लौह, मृदा, काष्ठ और फाइबर पर मूर्तियों का सृजन
Udaipur. हथौड़ी, छेनी, कटर मशीन की ध्वनि के करकश स्वर इस बात का अहसास कराते हैं कि हम खामोश मूर्तियों को जन्म देते हैं और ये मूर्तियां हमेशा नई दास्तां बयान करती नजर आती है। शिल्पग्राम परिसर में चल रही मल्टीमीडिया कार्यशाला में विभिन्न माध्यमों से मूर्ति शिल्पों का सृजन कार्य चल रहा है जिसमें लोक तथा अभिजात्य शिल्प का अनूठा समागम है।
कोई मार्बल के प्रस्तर खण्ड को आकर दे रहा है तो कोई मिट्टी के लौंदे को कलात्मक ढंग से उकेर रहा है कोई काष्ठ खण्ड में आकृति खोजने का काम कर रहा है। विभिन्न माध्यमों पर काम करने वाले मूर्ति शिल्प कलाकारों को एक मंच पर लाने तथा उनमें तकनीकी व शैलीगत कला के विनिमय के उद्देश्य से आयोजित कार्यशाला में दो दर्जन से ज्यादा शिल्पकार भाग ले रहे हैं। छत्तीसगढ़ के नंदलाल लोह पट्टिका से आदिम संस्कृति का उदृत करते नमूने बना रहे हैं, पोकरण का लूणाराम अपने गांव की माटी से मिट्टी के बर्तन सृजित कर रहा है। वरिष्ठ कलाकार दिल्ली के भौमिक चट्टान पर गिरते पानी से चट्टान पर अंकित रेशों को मूर्ति शिल्प के रूप में दिखाने का प्रयास कर रहे हैं।
कार्यशाला में युवा शिल्पी ने काष्ठ और वृक्ष की टहनियों से एक अनूठा बांसुरी तैयार की है जिसमें फूँक मारने पर स्वर प्रस्फुटित होते हैं। छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लौह शिल्पी नंदलाल विश्वकर्मा भट्टी पर लोहा तपाते व पीटते नजर आते हैं। नंदलाल ने सात फीट आकार की आदिम प्रतिमा बनाई हैं जो शिल्प और संस्कृति का परिचायक प्रतीत होती है।
उदयपुर के शिल्पी रोकेश कुमार सिंह ने प्रस्तर खण्ड से जहां कृति बनाई है वहीं फाइबर मोल्ड तैयार करने में साथियों की मदद कर रहे हैं। अहमदाबाद के ही एक शिल्पकार बताते हैं कि वे अपने परिजनों के साथ पिछली दीपावली पर घूमने आये थे तब यहां मार्बल की खण्डों को देख कर उनके मन में यहां के पत्थरों के साथ काम करने की उत्कंठा जागृत हुई और इस राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला के जरिये उनकी ये क्षुधा शांत हुई। कार्यशाला में अहमदाबाद की देविबा ने प्रस्तर खण्ड व विभिन्न धातुओं के सम्मिश्रण से कृति तैयार की जिसमें धातु निर्मित तीर एक अनूठके अंदाज में सृजित किया है। कार्यशाला के समन्वयक अहमदाबाद के महेन्द्र भाई कडिय़ा, उदयपुर के प्रो. सुरेश शर्मा व एल. एल वर्मा ने बताया कि एक साथ कई माध्यमों पर काम करने का अवसर प्रदान करने की दृष्टि से यह कार्यशाला अनूठी व वृहद है। कार्यशाला का समापन 18 फरवरी को साढ़े बारह बजे होगा। इस अवसर पर कृतियां भी प्रदर्शित की जायेगी।