युवाओं में दक्षता, कृषि अर्थव्यवस्था में महती आवश्यकता
Udaipur. अर्थशास्त्रा विभाग की व्याख्याता व पूर्व अधिष्ठाता डॉ. अंजू कोहली ने कहा कि निजी सेक्टर को बढ़ावा देने के साथ विदेशी पूंजी को आकर्षित किया गया। मनमोहन विकास मॉडल के काल में जब देशों की अर्थव्यवस्था वर्ष 2008 में चरमरा गई, उसके बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था थोडे़ हिचकोले खाने पर सुदृढ़ बनी रही, यह एक शुभ संकेत है।
वे समसामयिक विषय भारतीय अर्थव्यवस्था एवं राष्ट्रीय बजट का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव विषयक विज्ञान समिति के प्रबुद्ध चिन्तन प्रकोष्ठ की मासिक बैठक को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने आर्थिक विकास के अनेक सूचकों के गत वर्षों के विस्तृत आंकड़े प्रस्तुत करते हुए बताया कि सामाजिक सूचक जैसे घरेलू बचत, वित्तीय संरचना आदि आशाजनक रहे हैं। अगले वर्षों में आर्थिक विकास की गति को दो अकों तक बढ़ाकर वर्ष 2015 में देश की सकल घरेलू उत्पाद दर को चीन से आगे बढ़ाकर वर्ष 2025 तक सम्पन्न आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित करने हेतु तीन सुझाव दिए जिनमें कृषि एवं विनिर्माण विकास दर में तीव्र वृद्धि, मुद्रा स्फीति दर कम करना तथा राजकोषीय घाटा कम करना शामिल हैं। इन्हें प्राप्त करने हेतु भी कुछ सुझाव उन्हों ने दिए।
सीए डॉ. सतीश जैन ने राष्ट्रीय बजट का देश के आर्थिक विकास पर प्रभाव पर बोलते हुए कहा कि संपूर्ण बजट निर्माण प्रक्रिया अत्यधिक गोपनीय रखी जाती है। यह प्रक्रिया सितम्बर में आरम्भ कर सर्वप्रथम सरकारी खर्चों का व्यापक अध्ययन, अक्टूबर में वित्तमन्त्री द्वारा अन्य मन्त्रालयों की मांगों पर विचार एवं समावेशन की प्रक्रिया, दिसम्बर में बजट की मूल रूपरेखा बनाकर जनवरी माह में एक प्रकार का ब्लूप्रिन्ट तैयार किया जाता है तथा इसी माह में उद्योगपति, व्यापारी, ट्रेड यूनियन प्रतिनिधि, आमजन आदि से सुझाव आमन्त्रित कर समीक्षा उपरान्त फरवरी में इसे अन्तिम रूप दिया जाता है। हमारे राष्ट्रीय बजट का 66.65 अनियोजित खर्च तथा 33.35 नियोजित खर्च है। अनियोजित खर्च क्षेत्र में कमी के फलस्वरूप नियोजित विकास खर्च में वृद्धि कर विकास दर में वृद्धि कर पाएंगे। इस वर्ष का बजट महिला, युवा एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को समर्पित किया है, यह एक अच्छा लक्षण है।
सीए रमेशचन्द्र गर्ग के अध्यक्षीय उद्बोधन, अनेक प्रबुद्ध व्यक्तियों के सुझावों एवं वार्ताओं से यह निष्कर्ष निकलता है कि 121 करोड़ भारतवासी, अधिकतम् युवा, पर्याप्त संसाधन के कारण हम देश को एक सम्पन्न राष्ट्र के रूप में रूपान्तरित कर सकते हैं आवश्यकता मात्र है कि हम ईमानदारी से कार्य करें, नियमों का पालन सच्ची लगन से करें, हमारी इच्छाशक्ति को प्रबल बनाये, आर्थिक अनुदानों को समाप्त कर सभी वर्गों में स्वाभिमान जगाने का प्रयास करें।