पिता को भी अमर कर गई
Udaipur. यूं तो यहां पूरे वर्ष भर ही भीड़ रहती है लेकिन नवरात्रा में यहां की छटा देखते ही बनती है। बड़ी आवरी माता जिन्हें असावरा रानी के नाम से भी जाना जाता है। पिता को श्राप देने के बाद उनका भी नाम अमर कर गई। असावरा रानी न सिर्फ मेवाड़ व वाग्वर अंचल बल्कि संपूर्ण राजस्थान और गुजरात के शक्ति उपासकों की आस्था का केन्द्र है।
यहां श्रद्धा और भक्ति से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। मां आवरा का यह मंदिर करीब 750 वर्ष से अधिक पुराना बताते हैं। आदिवासी अंचल के जन-जन की अधिष्ठात्री मां आवरा की महिमा दूर-दूर तक फैली है। मंदिर चित्तौडग़ढ़ के भदेसर कस्बे के पास असावरा गांव में स्थित है। आवरी माता के नाम से विख्यात मां आवरा की यह मूर्ति जीवंत रूप में विद्यमान है। शक्ति के चमत्कार से माता के प्रतिरूप में सुबह, दोपहर व सायंकाल को अलग-अलग प्रतिरूप दिखता है। मां का अपना एक भव्य सत्य व लौकिक वर्णन है।
केसर कुंवर कैसे बनी असावरा रानी : किवदंतियों के अनुसार मेवाड़ के महाराणा हमीरसिंह के शासनकाल में अंगतजी व आवाजी राठौड़ राजपूत नाम के दो सगे भाई उनकी फौज में फौजदार थे। महाराणा ने दोनों भाइयों को सेवा के फलस्वरूप जागीरदारी दी। अंगतजी भदेसर कस्बा व आवाजी राठौड़ राजपूत को असावरा कस्बे का वर्चस्व दिया। आवाजी के सात लडक़े व एक लडक़ी थी। पुत्री का नाम केसर कुंवर था। केसर कुंवर विवाह योग्य हुई। आवाजी को पुत्री के विवाह की चिंता सताने लगी। आवाजी ने अपने पुरोहित को बुला कर सुयोग्य वर देखने भेजा लेकिन पुरोहितजी को कोई सुयोग्य वर नहीं मिला। पुरोहितजी निराश होकर पुन: असावरा गांव लौटे। आवाजी की चिंता और बढ़ गई। बाऊसा को चिंतित देख कर पुत्री केसर कुंवर ने पिता से कहा-दाता होकम आप अतरा परेशान क्यों होवो हो। मां कुलदेवी सब हाऊ करेला। केसर कुंवर ने कुलदेवी का ध्यान लगाया। कुलदेवी ने केसर को आदेश दिया कि तुम सूर्य की आराधना करो। केसर कुंवर ने भगवान सूर्य की आराधना की। उसके बाद पिता श्री आवाजी को कहा दाता होकम कुल मॉ के आदेश से सूरज पूज्यों सब ठीक होई जा ला। आवाजी ने अपने सातों पुत्रों को बुला कर पुत्री केसर कुंवर के लिए सुयोग्य वर ढूंढऩे के लिए सभी को अलग-अलग नगरों में भेजा। सभी भाई बाईसा का संबंध तय करने के लिए अलग-अलग दिशा में निकल पड़े। कुलदेवी की कृपा से जो भाई जहां गया, जिस स्थान पर गया उसने वहां बाईसा के लिए सुयोग्य वर का संबंध तय कर दिया। सातों भाइयों ने बहन के लिए अलग-अलग संबंध तय कर लिए। नियत समय पर सातों भाई लौटे। सभी ने आकर पिताजी को संबंध की बात बताई। सातों जगह संबंध की बात सुन कर पिताजी की चिंता और भी ज्यादा बढ़ गई। आवाजी ने सोचा, मनन किया। सात बारातें आएगी, सातों में झगड़ा होगा। खून-खराबा होगा। जन हानि होगी। सामंजस्य बिगड़ेगा, कौन संभालेगा? तभी पुत्री केसर कुंवर को यह बात पता लगी। पुत्री केसर कुंवर ने अपनी कुलदेवी का ध्यान धरा कि हे मां! यो खून-खराबो आपने रोकणो है। अब सब कुछ आपरे हाथ माय है। आपने ही अणी दुख ने दूर करनो है। तय तिथि को सातों बारातें असावरा कस्बे में पहुंची । बाऊसा होकम आवाजी की चिंता बढ़ गई। केसर कुंवर ने कुलदेवी का ध्यान कर अर्ज किया। उसी समय जोरधार धमाका हुआ, बिजली की गर्जना हुई। धरती फटी और केसर कुंवर उसमें समा गई। गर्जन सुनकर आवाजी दौड़े और इधर-उधर देखने लगे। कुछ दूरी पर बाईसा केसर कुंवर की ओढऩी जमीन के बाहर दिखाई दी। पास आकर दाता ने बाईसा की ओढऩी पकड़ ली और कहा कि बेटा ऐसा क्यों किया। बाईसा के भूमिमग्नस होते समय पीछे से पल्लू (साड़ी का कोना) पकडऩे पर बाईसा ने दाता से कहा कि आपने ऐसा क्यों किया। आपने मेरा पल्लू पकड़ा, इसलिए मैं आपको श्राप देती हूं कि आपका वंश अब आगे नहीं बढ़ेगा। बाउसा हाकम आवाजी रोए और कहा, हे बेटा यो श्राप वापिस लेई लो। केसर कुंवर ने कहा, अबे कई नी हो सके। पिता ने कहा, मैं थारो मंदिर बनाउंगा, भव्य इमारत रो निर्माण करूंगा लेकिन बाइसा वचनबद्ध थे। केसर कुंवर ने आवाजी से कहा-श्राप तो नी ले सकूं, लेकिन जा थारो नाम अमर हो जाएगा। और माता केसर कुंवर अंतर्ध्या न हो गई। उसी दिन से केसर कुंवर का नाम पिता के साथ मिल कर असावरा रानी हो गया। लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र माता असावरा को आवरा माता के नाम से भी पुकारते हैं। जिस स्थान पर माता की मूर्ति स्थापित है, वहीं पर केसर भूमिमग्न हुई थी। ऐसी मान्य ता है कि आवरा माता के दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं में एक बड़ी सं या शारीरिक व्याधियों लकवा, बोली बंद होना इत्यादि से पीडि़त रोगियों की होती है। जो बिस्तर से उठ भी नहीं पाते। जिन्हें उठाकर यहां लाया जाता है, वह भी माता की असीम कृपा से पैदल चल कर जाता है। रात्रि को सभी पीडि़त माताजी की मूर्ति के सामने बाहर चौक में लेट जाते हैं। अर्धरात्रि में माता आवरा के चमत्कार से पीडि़तों को ऐसा महसूस होता है कि माता उन्हें पैर लगाकर गई हैं। माताजी के दक्षिण दिशा में स्थित खिडक़ी या बारी के अंदर से निकलने पर सब दुख दर्द व्यवधान दूर होते हैं। सुख-शांति मिलती है। संतान की प्राप्ति होती है। मंदिर की संपूर्ण व्यवस्था का जिम्मा आवरी माता मंदिर ट्रस्ट के पास है। आवरी माता जाने के लिए उदयपुर से चम्पालाल धर्मशाला से बसें चलती हैं तथा सभी जिला मुख्यालय से बस की सुविधा भी उपलब्ध है।
जयप्रकाश माली