Udaipur. आलोक संस्थान के श्रीराम उद्यान में आठ दिवसीय श्रीरामकथा का समापन शुक्रवार को उत्तरकाण्ड व पूर्णाहूति के साथ हुआ। अंतिम दिन कथावाचक डॉ. प्रदीप कुमावत का विभिन्न संगठनों ने अभिनंदन किया।
कुमावत ने कहा कि उत्तरकाण्ड करुणा का काण्ड है। जीवन के सभी प्रश्नोंप के उत्तर इस काण्ड में हैं अतः इसे उत्तरकाण्ड कहा जाता है। ईर्ष्याी, द्वेष, मोह, लालच और काम जहां है, वह मरे के समान है। जो राम जी की सेवा करें वह बड़ा भाग्यशाली हो जाता है। रामकथा कहती है कि नेतृत्व करने वाले की प्रतिष्ठाड़ बढ़ने के साथ ही साथ कार्य करने वाले सभी लोगों की प्रतिश्ठा भी बढ़ जाती है। जन्मभूमि की जय बोलनी चाहिये। रामराज्य शस्त्रों से नहीं, शास्त्रों से आया है। लवकुश के प्रसंग का वर्णन करते हुए उन्होंीने कहा कि राम ने लोक लाज से सीता को आश्रम नहीं भेजा बल्कि उन्हें पता था कि आश्रम में रहकर सीता पुत्रों को जन्म देगी और शस्त्र और शास्त्र दोनों का ज्ञान उन्हें आश्रम में मिल जायेगा।
उन्होंने कहा कि राम का नाम राम से बड़ा कहा गया है। जो मालिक के सबसे निकट होता है उसके लोग विरोधी होते है। जो अहंकार को छोड़ सकता है, अहं भाव उसके मन और जीवन में कभी नहीं पनपेगा। भगवान भक्त के लिये बहुत कुछ करते हैं। भक्त का इतंजार भगवान करते है। ईश्वपर के प्रति पूर्ण समर्पण ही भक्त का कल्याण है। रघुनाथ जी के प्रति मेरा प्रेम कभी कम न हो। इसी के साथ रामकथा सम्पन्न हुई। कथा में राम-सीता व हनुमान के कीर्तन गाए गए तथा विद्यालय विद्यार्थियों ने रामकथा के प्रसंगानुसार विभिन्न रामायण के चरित्रों की वेशभूषा के साथ आकर्षक झांकियां सजाई। कथा के अंत में रामायण जी की आरती यजमानों व श्रद्धालुओं ने की।