उदयपुर। मेवाड़ में वास्तु एवं ज्योतिष की समृद्ध परम्परा रही है। यदि मेवाड़ को तनिक विस्तार से देखें तो पुष्कर वह क्षेत्र है जहां से मानव की उत्पत्ति हुई है। यही हरिशचन्द्र एवं वरूण का प्रसिद्ध यज्ञ हुआ जिससे आदिवासियों के पूर्वज मधु छंदा निष्कासित हुए।
ये विचार जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ के संघटक ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र विभाग की ओर से आयोजित एक दिवसीय मेवाड़ के वास्तु शास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र को देन विषय पर मुख्य वक्ता डॉ. विष्णु माली ने व्यक्त किए। उन्होंकने कहा कि इसी क्षेत्र में बालाथल, ईसवाल, आघाट आदि में समृद्ध नगर रचना लोह प्रगलन की भट्टी, मंदिर, दुर्ग, महल तो मिलते ही हैं। इनको बनाने के सिद्धांत के रूप में मंडन पम्परा एक समृद्ध साहित्य की घोतक है। अध्यक्षता प्रख्यात इतिहासविद् नारायणलाल शर्मा ने करते हुए कहा कि यह मेवाड़ का सांस्कृतिक विस्तार मानें तो इसकी लम्बाई मालवा तक जाती है। मालवा की सांस्कृतिक धारा मेवाड के चितौड़ तक जा रही है। ऐसी स्थिति में ज्योतिष के प्रमुख रचनाकार वराह मिहिर भी इस क्षेत्र के प्रभाव से मुक्त नहीं है। विशिष्टक अतिथि ज्योतिषविद् हरीश शर्मा थे। संचालन विभागाध्यक्ष डॉ. अलखनंदा ने किया। धन्यवाद सेमीनार संयेाजक डॉ. शक्ति कुमार शर्मा ने दिया।