विश्व विरासत दिवस पर विद्यापीठ में संगोष्ठी
उदयपुर। विरासत या धरोहर का मतलब सिर्फ पुराने या खण्डर हो चुके भवन, किले, बावडिया, नदी , तालाब, आदि से ही नहीं है। हमारी भाषा, साहित्य, कला, लोक गीत, संगीत, वन व संयुक्त परिवार आदि भी हमारी विरासत के अंग हैं।
यह कहना है इतिहासविद प्रो. राजशेखर व्यास का। वे जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय की ओर से शुक्रवार को विश्व विरासत दिवस पर आयोजित संगोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। द इंस्टीुट्यूट ऑफ राजस्थान स्टडीज साहित्य संस्थान के सेमीनार हॉल में शहर के प्रमुख इतिहासकारों ने भाग लिया। संस्थान के निदेशक डॉ. ललित पाण्डे ने बताया कि सरकार और विश्वविद्यालय को अपने स्तर पर सक्रिय होकर कार्य करना होगा तभी संरक्षण की अलख जगाई जा सकती है। एक वर्ष में संस्थान द्वारा किये गये पुरातात्विक कार्यों का लेखा जोखा डॉ. कुलशेखर व्यास ने लाइट शो के माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने सोम गोमती की घाटियों में खोजे गए आहड़ संस्कृतिक नवीन चरित्र, बाठेडा़, गणोली, जवासिया व धाणेश्वर में पाषाण कार्य, संस्कृतिक के बारे में भी बताया।
विरासतों का गढ़ है भारत : अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात इतिहास विद् प्रो. के. एस. गुप्ता ने कहा कि देश में भारत की संस्कृति और विरासत का मुकाबला नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत विरासतों का गढ़ है। साथ ही मेवाड़ की विरासत पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यही कारण है कि उदयपुर में भी आने वाले पर्यटकों की संख्या अधिक रहती है।
बचानी होगी धरोहर : इतिहासविद प्रो. राजशेखर व्यास ने कहा कि अपने देश में विरासत ही है जो आज भी अनूठी पहचान लिए है। निदेशक डॉ. ललित पाण्ड ने बताया कि संयुक्त परिवार भी इस श्रेणी में आते हैं। आदिकाल से जो लोग इन्हें परिवारों में रहते थे वर्तमान दौर विपरीत हो चला है। भ्रष्टचार बढ़ा है। कहा जा सकता है कि विरासत के साथ छेड़छाड़ या परिवर्तन करने से भयंकर परिणाम हो सकते हैं। अतः इसका संरक्षण अनिवार्य है। संगोष्ठी में डॉ. महेश आमेटा, डॉ. कुलशेखर व्यास, डॉ. नीता कोठारी, भरत आचार्य ने भी विचार व्यक्त किए।