आचार्य तुलसी वरिष्ठ नागरिक संस्थान की छठीं कार्यशाला
उदयपुर। साध्वी कनक श्रीजी ने कहा कि वरिष्ठजन न सिर्फ समाज बल्कि परिवार के भी कल्पवृक्ष हैं। उनके होने से एक विश्वास की अनुभूति होती है। कल जो बच्चा था आज वही युवा है और कल वही बुजुर्ग बनेगा। वे परिवार आदरणीय हैं जहां तीनों पीढिय़ां एक साथ रहती हैं। बच्चों में वरिष्ठजनों के प्रति श्रद्धा व सम्मान होना चाहिए।
वे श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा की ओर से आचार्य तुलसी वरिष्ठ नागरिक संस्थान के तत्वावधान में रविवार को विज्ञान समिति में कल, आज और कल विषयक आयोजित छठी कार्यशाला को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि दुखों से उपर उठकर काम करें। हर व्यक्ति को खुश रहना चाहिए। जीवन तो जीने की कला है। कैसे भी बिताओ, बीत तो रहा ही है फिर उसे क्यों न खुशी से गुजारो। परिवार में जहां वरिष्ठजनों को अपनी गरिमा, मर्यादा के साथ रहना चाहिए। निरंतर प्रसन्न रहना, सकारात्मक रहना और सृजनात्मक दृष्टि रखना ये वरिष्ठजनों के उदाहरण हैं। वरिष्ठ वे हैं जिनके पास ज्ञान की गरिमा है। जिन्हें जीवन जीने की कला आती है। ऐसे वरिष्ठ समाज, परिवार के गौरव होते हैं। घर के दादा-दादी तो घर के आंगन का बरगद हैं। बरगद की छांव में छोटे बड़े पेड़ पौधे फलते-फूलते हैं। उन्हें संस्कारों की मिट्टी से सींचते हैं। इसके विपरीत आज वरिष्ठजन अकेलेपन का अनुभव करते हैं। क्योंकि बेटा बहू के साथ बाहर है। पौत्र-पौत्रियां बाहर पढऩे जाती हैं। जो काम जितना कर सकते हैं, उतना ही करें। जवानी कब आई और कब चली गई। घर के बच्चों, युवाओं पर नजर रखें ताकि उनसे जुड़ाव रह सके। आपस की कडिय़ों को जोडक़र रखना ही उनका काम है। परिवार में जब प्रेम, भक्ति और त्याग हो तो परिवार अप्रतिम बन जाता है। घर में प्रेम और आनंद का वातावरण बना रहे, ऐसा प्रयास होना चाहिए।
साध्वी मधुलता ने कहा कि संगोष्ठी का विषय कल, आज और कल को हम कई संदर्भों में ले सकते हैं। इसमें बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी आ जाते हैं। अतीत, वर्तमान और भविष्य इनका समन्वय परिवार में ही देखा जा सकता है। वर्तमान में यह संस्कृति क्षीण हो रही है। तीनों पीढिय़ां अगर साथ चलेगी तो जीवन सफलता से चलेगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि एक व्यक्ति अपनी इज्जत को साथ लेकर चलता है और एक व्यक्ति अपनी इज्जत को घर पर रखकर चलता है। इज्जत को घर पर रखने वाला व्यक्ति संस्कारी, सदाचारी होता है। उसके छोटे बच्चों से पता चल जाता है कि कैसे संस्कार दिए गए हैं। बच्चों को संस्कारित करने का प्रयास करें। एक पीढ़ी संस्कारित हो लेकिन दूसरी पीढ़ी को भी धार्मिक बनाने का काम बुजुर्गों को ही करना है। बचपन, यौवन और बुढ़ापा एक समान होता है। कहने को बच्चा और बूढ़ा एक समान कहा जाता है लेकिन बच्चे जैसा सरल जीवन कभी नहीं आ सकता। पं. नेहरू से किसी ने एक बार पूछा था तो उन्होंने स्वस्थ और खुश रहने के तीन नुस्खे बताए। पहला कि प्रकृति प्रिय हूं, दूसरा छोटी छोटी बातों में उलझता नहीं हूं और तीसरा बच्चों से प्रेम करता हूं। अगर आप छोटी छोटी बातों में उलझेंगे नहीं तो तनावमुक्त रहेंगे। छोटी समस्याओं को गौण करें। ये परिवार, समाज सभी जगह हो सकती है। इससे तनावमुक्त रहेंगे। साथ ही अच्छा जीवन जी पाएंगे। जो व्यक्ति आनंद में जीना सीख जाता है, उसका जीवन सफल हो जाता है।
साध्वी मधुलेखा ने मनवा जागो रे.. अपना धर्म सुधारो रे.. की मधुर स्वर में सुंदर गीतिका प्रस्तुत की। साध्वी वीणा कुमारी, साध्वी समितिप्रभा ने भी विचार व्यक्त किए।
स्वागत भाषण देते हुए सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने कहा कि समाज के वरिष्ठ नागरिकों को जोड़े रखने के लिए प्रतिमाह सभा की ओर से कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। इसमें प्रश्नोत्तरी के माध्यम से वरिष्ठ नागरिकों के ज्ञान में वृद्धि का प्रयास भी होता है वहीं स्वस्थ मनोरंजन के लिए छोटे छोटे खेल भी खेलाए जाते हैं। कब, कैसे और कहां ज्ञान की आवश्यकता पड़ेगी, इसकी जानकारी के लिए भी यह कार्यशाला हो रही है। उन्होंने बताया कि साध्वी कनकश्रीजी ठाणा-5 का इस सप्ताह 26-27 मई को लादूलाल मेड़तवाल, 28 को विनोद कच्छारा, 29-30 को बोहरा गणेशजी में छगनलाल बोहरा तथा 31 मई को सुभाष नगर में उनका प्रवास रहेगा। अगले रविवार को हिरणमगरी सेक्टर 4 स्थित तुलसी निकेतन में कार्यक्रम होगा। उन्होंने आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी वर्ष में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों की जानकारी भी दी।
इससे पूर्व कार्यक्रम का आगाज साध्वी कनक श्रीजी के मंगलपाठ से हुआ। शताब्दी गीत शशि चह्वाण, मीना धाकड़ ने किया। संचालन पारसमल कोठारी ने किया वहीं आभार छगनलाल बोहरा ने जताया। इस दौरान विज्ञान समिति के अध्यक्ष के. एल. कोठारी, सभा के मंत्री अर्जुन खोखावत आदि भी मौजूद थे।