– ट्रांसपोर्ट माफिया रखते हैं करोड़ों की योजना अटकाने का माद्दा, रेलवे को 118 करोड़ देने के बाद भी रेल लाइन नहीं बिछा पाना है सबूत, आरएसएमएम के लिए पांच वर्ष बाद रेल लाइन की उपयोगिता ही हो जाएगी खत्म
उदयपुर। आरएसएमएम पर ट्रांसपोर्ट माफिया काफी हावी हो चुका है। ट्रांसपोर्ट माफिया में इतना माद्दा है कि वह आएसएमएम की करोड़ों की योजनाओं को अटका सकता है, जिसका एक नमूना जैसलमेर में थयात-हमीरा-सानू तक ब्रॉडगेज रेलवे लाइन बिछाने का काम शुरू नहीं कर पाना है।
इसके लिए पिछले वर्ष 13 मई को 118 करोड़ की राशि आरएसएमएम ने रेलवे को दी थी, जिसका सालाना ब्याज ही 14 करोड़ होता है। पता चला है कि जैसलमेर के एक प्रमुख राजनेता की ट्रांसपोर्ट माफिया से सांठ-गांठ के चलते यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई। अगर यह रेल लाइन जल्द ही नहीं डाली गई तो आरएसएमएम के लिए इसकी कोई उपयोगिता ही नहीं रहेगी, क्योंकि जानकारों के अनुसार अब सानू में 5-6 वर्षों तक ही लाइमस्टोन का उत्पादन किया जा सकता है।
जानकारों के अनुसार 1996 से 2013 तक सानू से 60 किलोमीटर दूर जैसलमेर रेलवे स्टेशन तक करीब 20 मिलियन टन स्टील ग्रेड लाइमस्टोन का उत्पादन रोड ट्रांसपोर्ट के माध्यम से पहुंचाया जा चुका था। अब सानू में चार-पांच सालों तक उत्पादित होने वाला लाइमस्टोन ही शेष रह गया है। आरएसएमएम अब कोई नई खोज करें, तो बात अलग है अन्यथा वहां लाइमस्टोन कर भंडार खत्म होने के कगार पर है। 10 लाख टन लाइमस्टोन निकालने को 52 किलोमीटर लंबी रेल लाइन बिछाने के लिए 52 करोड़ रुपए की बजाय दुगुने से भी अधिक 118 करोड़ रुपए का रेलवे को भुगतान करना आरएसएमएम के अधिकारियों की समझदारी पर सवालिया निशान लगाता है। इस 52 किलोमीटर लंबी रेल लाइन बिछाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की सम्मानित कंपनियों में से एक का चयन करने और उनसे बैंक गारंटी लेने के बजाय आरएसएमएम ने रेलवे को बिना किसी गारंटी के 118 करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि एक मुश्त भुगतान के बजाय काम शुरू होने के बाद इस भुगतान को टुकड़ों में किया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
1992 से कर रहा है उत्पादन : आरएसएमएम अक्टूबर, 1992 से सानू लाइमस्टोन माइंस से फ्लक्स ग्रेड लाइमस्टोन का उत्पादन कर रहा है। जब इस माइंस का निर्माण कार्य चल रहा था, तब आरएसएमएम के प्रबंध निदेशक पीके देब ने कंसेप्ट पेपर ऑन इंटीग्रेटेड डवलपमेंट ऑफ स्टील ग्रेड लाइमस्टोन एंड अदर नेचुरल रिसोर्सेज ऑफ जैसलमेर नाम से एक रिपोर्ट तैयार की थी। इस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत से चर्चा भी हुई, जिसे उन्होंने हाथों-हाथ स्वीकृति भी दे दी।
लागत बताई थी 52 करोड़ : थयात-हमीरा से सानू रेलवे स्टेशन तक ब्रॉडगेज लाइन बिछाने की फिजिबल रिपोर्ट तैयार की गई। सलाहकारों की मदद से तैयार इस रिपोर्ट में उस समय रेलवे लाइन बिछाने की लागत 52 करोड़ रुपए बताई गई। उसी समय एक सीमेंट प्लांट स्थापित करने के लिए ठाणे की एसोसिएटेड सीमेंट कंपनीज लिमिटेड तथा गैस आधारित ऊर्जा सयंत्र स्थापित करने के लिए चेन्नई की फिचर इंजीनियर्स कंपनी ने फिजिबल रिपोर्ट तैयार की। इन रिपोट्र्स का अध्ययन करने के बाद जैसलमेर लाइमस्टोन कंपनी (जेएलसी) ने इसे कार्यान्वित करने के लिए एक नई रिपोर्ट तैयार की। वर्ष 1994 में तत्कालीन मुख्य सचिव एमएल मेहता के अधीनस्थ पब्लिक इंवेस्टमेंट बोर्ड ऑफ राजस्थान ने हिंदुस्तान जिंक और स्टील ऑथोरिटी ऑफ इंडिया को बराबर इक्विटी का साझेदार बनाते हुए इस जैसलमेर लाइमस्टोन कंपनी पर सिद्धांतत: सहमति दी। 1995 में योजना आयोग ने इस पर विचार कर इसे स्वीकृत कर दिया और 1996 में आरएसएमएमएल ने पर्यावरण प्रभाव आकलन के रूप में पर्यावरण प्रबंधन योजना के तहत 52 किलोमीटर लंबी रेललाइन के लिए योजना बना ली थी। रेलवे द्वारा आरएसएमएम के सुझाव नहीं मानने का एक बड़ा ट्रेक रिकॉर्ड है।
पुलों/छोटी पुलियाओं के निर्माण के बावजूद उमरड़ा रेलवे स्टेशन को रेलवे ने ब्रॉडगेज से नहीं जोड़ा, जिसके कारण वर्ष 2001 से रॉक फास्फेट झामर कोटड़ा से ट्रकों द्वारा देबारी रेलवे स्टेशन तक ले जाना पड़ रहा है।
अगर आरएसएमएम 118 करोड़ रुपए उदयपुर-हिम्मतनगर लाइन के देता तो न सिर्फ मेवाड़ के लोगों का सपना पूरा हो जाता बल्कि अब तक झामर कोटड़ा से उमरड़ा के बजाय देबारी तक रोड ट्रांसपोर्ट से रॉक फास्फेट ले जाने पर हुआ खर्च भी आधा होता। जाहिर है कि रेलवे और आरएसएमएम ट्रांसपोर्ट माफिया के दबाव में काम कर रहा है। आरएसएमएम को राज्य सरकार ने भी संभवत: बच्चों का खेल समझ लिया है इसलिए यहां पूर्णकालिक निदेशक की नियुक्ति के बजाय हर बार अतिरिक्त कार्यभार दे दिया जाता है। इससे अतिरिक्त कार्यभार संभालने वाले अधिकारी का न तो यहां और न ही अपने मूल विभाग में पूरा ध्यान लग पाता है।