उदयपुर। मानव जन्म से लेकर मृत्यु तक समाज, राष्ट्र व आम जनता का किसी न किसी रूप में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग लेता ही है। जन सहयोग से मानव जीवन का विकास होता है। व्यक्ति सभी से अलग एकाकी होकर नही जी सकता। समाज-राष्ट्र उसकी मूल-भूत आवश्यकता है।
ये विचार श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि ‘‘कुमुद’’ ने पंचायती नोहरा में चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किये। परस्पर सहयोग से हजारों दीन-दुखियों के दु:ख को ठीक किया जा सकता है। परस्पर सहयोग यह किसी भी सरकार या संस्था के सहयोग से भी अधिक पवित्र और महान होता है।
उदय मुनि
प्रज्ञामहर्षि उदय मुनि ने वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान, सेक्टर 4, में धर्मसभा को संबोधित करते हुये कहा कि आत्मा कूटस्थ नित्य है। इसमें विकार होते ही नहीं। सांख्यमती को उत्तर दिया कि प्रकृति या कर्म प्रकृति तो जड़ है। उसमें विकार भाव होते ही नही, विकार भी आत्मा ही करता है। जितना-जितना यह तत्व पक्का होता हैं कि मैं तो निर्विकार स्वभावी हूं फिर रागादि विकार भाव विभाव में नही जाएगा, कर्मबंध से सकेगा और निर्विकार शुद्व स्वरूप को प्रकट करता जाएगा, अन्नतः मुक्त हो जाएगा।
आचार्य कनकनंदी
संसार में जीव द्रव्य जब तक मिथ्यात्मक अवस्था में रहता है तब तक उसकी विभाव पर्याय रहती है। किन्तु तत्वार्थ का श्रद्धान होने पर उसका स्वभाव में परिणमन प्रारम्भ होता है। ये विचार वैज्ञनिक धर्माचार्य कनकनंदी गुरुदेव ने आदिनाथ भवन सेक्टर 11 में आयोजित प्रातकालीन धर्मसभा में व्यक्त किए। आचार्य ने द्रव्य, गुण, पर्याय के स्वरूप का विस्तार से प्ररूपण करते हुए द्रव्यों की व्यापकता, उपादेयता व उनके सामान्य विशेष गुणों का व्याख्यान किया।