आचार्य महाश्रमण की अहिंसा यात्रा शुरू
उदयपुर। नई दिल्ली से 10 हजार किमी. का उद्देश्य लिए अहिंसा यात्रा निकालने वाले शांतिदूत, जन जन की आस्था के केन्द्र आचार्य महाश्रमण के स्वास्थ्य की एवं उनके निरामय रहने को लेकर रविवार को तेरापंथ भवन में मंगल भावना समारोह का आयोजन हुआ। इससे पूर्व समाजजनों ने भव्य पदयात्रा निकाली जो बहुश्रुत परिषद की सदस्या साध्वी श्री कनकश्रीजी के नेतृत्व में तेरापंथ भवन पहुंची।
पदयात्रा में सबसे आगे जैन धर्म का पचरंगा ध्वज था। उनके पीछे साध्वी श्री कनकश्रीजी एवं उनकी सहवर्तिनी साध्वीवृंद, तेरापंथ युवक परिषद के कार्यकर्ता और फिर तेरापंथ सभा के श्रावक-श्राविकाएं दो दो की कतार में चलते हुए उद्घोष लगाते चल रहे थे।
तेरापंथ भवन में हुए मंगल भावना समारोह में साध्वी कनक श्रीजी ने कहा कि आचार्य महाश्रमण के निरामय रहने, उनकी पदयात्रा के प्रति अपनी अपनी मंगल भावनाएं व्यक्त करने के लिए देश भर में आज के दिन एकासन, उपवास, आयम्बिल, जप-तप हो रहे हैं। इसी कड़ी में उदयपुर तेरापंथी सभा के तत्वावधान में यहां तेरापंथ युवक परिषद के कार्यकर्ताओं ने 101 उपवास, श्रावक-श्राविकाओं ने 281 एकासन, 15 आयम्बिल तथा 15 अन्य जप-तप किए हैं।
उन्होंने कहा कि जैन धर्म में पदयात्रा अनिवार्य थी और है। आचार्य जहां रहते हैं, वहां शांति के अमृत कलश छलकाते हैं। आचार्य तुलसी और महाप्रज्ञ के अहिंसा मार्ग को आचार्य महाश्रमण ने आलोकित किया। उन्होंने लाडनूं में अपने प्रथम चातुर्मास में ही पदयात्रा की घोषणा कर दी थी। साथ ही कहा था कि आचार्य महाप्रज्ञ की इच्छानुसार पदयात्रा पूर्वांचल से शुरू होगी। उन्होंने कहा कि पूर्व दिशा, पूर्वांचल, प्राची यानी जहां से सूर्योदय होता है। इस दिशा से सूर्य आलोकित होकर अंधकार को भगाता है। इस दिशा से यात्रा आरंभ करने का यही मकसद है। आचार्य महाश्रमण विलक्षण महापुरुष हैं। गुरु के मुंह से शिष्यों के प्रति निकले शब्दों का ही महत्व है।
साध्वी मधुलता ने कहा कि पूर्व में निकली अहिंसा यात्रा आज भी लोगों के मानस पटल पर अंकित है। इस बार दिल्ली में हुए आचार्य श्री के चातुर्मास के दौरान हजारों लोगों ने नशामुक्ति के संकल्प किए। आचार्य का कहना है कि नशा ही अपराधों की जड़ है। अगर नशा ही नही करेंगे तो अपराधों पर स्वत: रोक लग जाएगी।
साध्वी मधुलता साध्वी समितिप्रभा, साध्वी वीणा कुमारी, साध्वी मधुलेखा सहित अन्य श्राविकाओं ने सामूहिक गीत प्रस्तुत किया जिस पर पूरा सभागार ओम अर्हम की ध्वनि से गूंज उठा। साध्वी मधुलेखा ने कहा कि इस बेजोड़ धर्मसंघ को और ऊंचाई मिले। ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने अपनी गीतिका प्रस्तुत की। साध्वी वीणा कुमारी ने अभय अहिंसा मंगल मैत्री जीवन की मुस्कान हो. . गीतिका प्रस्तुत की।
तेरापंथी सभा के अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने कहा कि आचार्य इस यात्रा के दौरान नेपाल, भूटान भी जाएंगे। जप, तप, त्याग, तपस्या का अघ्र्य चढ़ाते हुए जैन श्रावकों की मंशा यही है कि आचार्य स्वस्थ रहें और उनकी कीर्ति पताका विदेशों तक लहराए। उनका संरक्षण, मार्गदर्शन जन्मो-जन्म तक मिलता रहे। भगवान महावीर, गौतम बुद्ध का पर कल्याण का संदेश लिए आचार्य महाश्रमण अपने पथ पद अग्रसर हैं। वे करीब 10 हजार किमी. की यात्रा करेंगे। उनके बताए पथ के अनुसार ही देश भर में जनजागरण, नशामुक्ति के कार्यक्रम हो रहे हैं।
इससे पूर्व सभा के मुख्य संरक्षक शांतिलाल सिंघवी ने कहा कि अहिंसा यात्रा को लेकर पहली बार विदेश यात्रा कर रहे आचार्य महाश्रमण के लिए सम्पूर्ण देश मंगल भावनाएं व्यक्त कर रहा है। महिला मंडल की मंत्री दीपिका मारू ने कहा कि अहिंसा के अग्रदूत बनकर आचार्य महाश्रमण की प्रेरणा से क्षमता भरी जीवन शैली में अनुशासना से जैन धर्म आलोकित हो रहा है। प्रशासन चलाने वाले अधिकारी भी आचार्य श्री के पास ऊर्जा पाने को आते हैं। यह यात्रा देश ही नहीं विदेश के लिए भी प्रेरणादायी होगी। तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष अभिषेक पोखरना ने कहा कि तीन देश, 12 राज्य और 10 हजार किमी. की यात्रा। इस दौरान यात्रा के करोड़ों सहभागी बनेंगे। यात्रा का उद्देश्य सद्भावना का प्रचार, नैतिकता का प्रसार, नशामुक्ति के लिए प्रेरणा है। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के अध्यक्ष हीरालाल कुणावत ने कहा कि अब तो अहिंसा को वैज्ञानिक भी मान चुके हैं कि पेड़-पौधों में भी जीव होता है, उनके प्रति भी अहिंसा जरूरी है। गांधीजी ने अहिंसा का प्रयोग राजनीति में किया। विश्व में शांति, समन्वय कायम हो, इसी उद्देश्य को लेकर आचार्य महाश्रमण की यह अहिंसा यात्रा निकाली जा रही है। ज्ञानशाला के संयोजक फतहलाल जैन ने भी आचार्य की अहिंसा यात्रा के प्रति मंगल भावनाएं व्यक्त कीं।
इससे पूर्व कार्यक्रम का संचालन सभा के मंत्री सूर्यप्रकाश मेहता ने किया। आभार उपाध्यक्ष सुबोध दुग्गड़ ने व्यक्त किया। आरंभ में मंगलाचरण शशि चह्वाण ने किया। कार्यक्रम का आरंभ साध्वी कनकश्रीजी के नमस्कार महामंत्र से हुआ।