तेरापंथ धर्मसंघ ने मनाया 151 वां मर्यादा महोत्सव
उदयपुर। तेरापंथ धर्मसंघ के मुनि पृथ्वीराज स्वामी ने कहा कि जीवन में खुशियां स्थापित करने का नाम है मर्यादा। अगर मर्यादा न हो तो जीवन बेकार है। मर्यादाहीन व्यक्ति बिना ब्रेक की गाड़ी की तरह है जो कभी भी कहीं भी दुर्घटना का कारण बन सकता है।
वे रविवार को अणुव्रत चौक स्थित तेरापंथ भवन में धर्मसंघ के 151 वें मर्यादा महोत्सव के तहत आयोजित चतुर्विद संघ की धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ऋषि प्रधान हमारे देश में कई परम्पराएं, रीति-रिवाज, त्योहार इत्यादि हैं लेकिन मर्यादा महोत्सव का आगाज संभवत: दुनिया में कहीं नहीं होता सिवाय तेरापंथ धर्मसंघ के। मर्यादा एक लक्ष्मण रेखा है जो पार कर लेता है उसका पतन हो जाता है और जो सीमा में रहकर जीवन पर्यन्त कार्य करता है, उसका जीवन शांतिपूर्ण निकलता है। हर चीज में मर्यादा आवश्यक है। सूर्य, चंद्रमा, नदियां, समंदर आदि अपनी मर्यादा तोड़ दें, कभी सूर्य अपनी मर्यादा छोडक़र उदय या अस्त न हो, क्या संभव है? अगर ऐसा हो जाए तो उस पल की हम कल्पना भी नहीं कर सकते? मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी के दिन आचार्य भिक्षु ने धर्मसंघ की कुछ मर्यादाएं बनाई। बस उसी के आधार पर हम यह मर्यादा महोत्सव का आयोजन करते आ रहे हैं।
साध्वी कनकश्रीजी ने कहा कि शौर्य, भक्ति, त्याग की इस नगरी में मुनि श्री के सान्निध्य में इस मर्यादा महोत्सव में शामिल होकर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। सिर्फ 7-8 लोगों की मौजूदगी में आचार्य भिक्षु के बनाए गए मर्यादा नियम आज भी लाखों लोगों के लिए प्रासंगिक हैं। मर्यादाओं पर आधारित धर्मसंघ का स्वरूप है। सभी साधु-साध्वियों का ध्यान गुरुदेव के चरणों की ओर रहता है। अनुशासित धर्मसंघ का यह एक अनूठा उदाहरण है। आचार्य ने अपने 27 वर्षों की तपस्या, स्वाध्याय का बल इन मर्यादाओं में डाला जो धर्मसंघ के लिए नियम बन गए। इसलिए ये हमारी मार्गदर्शक, शक्ति की स्रोत हैं। मर्यादा पत्र हमारा छत्र है। आज हर कोई किसी को लीड करना चाहता है, पहले फॉलो करना भी तो सीख लो। स्वाध्याय, त्याग, सामायिक, प्रत्येक श्रावक के लिए जरूरी है।
इससे पूर्व तेरापंथी सभा के अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन करते हुए कहा कि मर्यादाओं पर हमें स्वाभिमान है। आचार्य भिक्षु ने बड़ी सूझबूझ के साथ धर्मसंघ की नींव रखी। सभी की सहमति से मर्यादाएं लिखीं गई जो आज भी बरकरार है। यह एक ऐसा धर्मसंघ है जिसे अनुशासन का पर्याय माना जाता है। इसमें न सिर्फ श्रावक-श्राविकाओं बल्कि साधु-साध्वियों के भी अधिकार और कर्तव्य समाहित हैं। यह एक गुरु-एक विधान, निज पर शासन फिर अनुशासन की पालना करता है। पूज्य प्रवर के निर्देशों पर चलने वाला समाज है जिसका सभी धर्मसंघों में व्यापक प्रचार-प्रसार है।
मुनि अजय प्रकाश ने कहा कि जिस तरह 26 जनवरी को देश का गणतंत्र दिवस मनाया जाता है ठीक तेरापंथ धर्मसंघ में उसी तरह मर्यादा महोत्सव मनाया जाता है। अनुशासन की सर्वथा जरूरत है। आचार्यश्री का एक आदेश होता है और लाखों अनुयायी उस पथ पर चलने को तैयार हो जाते हैं। ये सिर्फ वहीं संभव है जहां अहंकार, ममकार न हो। मर्यादाएं लिखने वाले आचार्य किसी आईआईएम, आईआईटी से नहीं पढ़े लेकिन अपने वर्षों के अनुभव को उन्होंने मर्यादाओं में इस तरह साझा किया कि वे आज भी उसी तरह प्रासंगिक हैं। अगर इसे हर जगह लागू किया जाए तो सभी जगह सिर्फ प्रेम ही फैलेगा। बिना मर्यादा, अनुशासन के जीवन बेकार है।
साध्वी मधुलता ने कहा कि एक अकेला ही चला था की तर्ज पर आचार्य भिक्षु ने मर्यादाओं की रचना की और उसमें लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया। उन्होंने बताया कि साधना दो तरह की होती है व्यक्तिगत और संघ साधना। व्यक्तिगत में शास्ता और शास्य होते हैं। कुछ भी काम करो लेकिन अगर अनुशासन और आचार न हो तो वे सब बेकार हो जाते हैं। परिवारों में भी मर्यादा, अनुशासन जरूरी है। मर्यादा निर्देशिका का वाचन करते हैं तो वह परिवार भी आदर्श परिवार कहलाता है। कोई किसी के नीचे रहकर काम ही नहीं करना चाहता, इसलिए आज इस तरह की विसंगतियां देखने को मिलती हैं। स्वतंत्रता भी दो तरह की मर्यादा तोडक़र और मर्यादाओं का पालन कर होती है। साध्वीवृंदों साध्वी मधुलता, साध्वी मधुलेखा, साध्वी समितिप्रभा, साध्वी वीणाकुमारी ने सामूहिक गीतिका भी प्रस्तुत की।
इससे पूर्व तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष अभिषेक पोखरना ने भीखणजी स्वामी.. सुंदर गीत प्रस्तुत किया वहीं मंगलाचरण शशि चह्वाण ने किया। कार्यक्रम का आरंभ मुनि पृथ्वीराज स्वामी के नमस्कार महामंत्र से हुआ। साध्वी मधुलता के घोष के साथ त्रिपदी वंदना हुई। कार्यक्रम का संचालन मंत्री सूर्यप्रकाश मेहता ने किया। आभार शांतिलाल सिंघवी ने व्यक्त किया।