उदयपुर । लोकतंत्र में शक्तियों का विकेन्द्रीकरण होना आवश्यक है। यदि स्थानीय शक्तियां राज्य सरकार के हाथों में केन्द्रित रहीं तो जन भागीदारी को शासन से जोडना दुश्वर हो जाएगा। इसके लिए राज्य सरकार की शक्तियों में टूटन आवश्यक है तभी स्थानीय शासन प्रभावी रूप से कार्य कर सकेगा।
ये विचार सुखाडिया विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर संजय लोढा ने आज यहां विद्याभवन रूरल इंस्टीट्यूट के सभागार में संस्थान के राजनीति विज्ञान विभाग और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘तृणमूल स्तर पर विकास : मुद्दे और चुनौतियां’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किया । प्रो. लोढा ने स्थानीय शासन के लाभों में जन भागीदारी, उत्तर दायित्वता और पारदर्शिता जैसी आंशिक उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए बताया कि फण्ड, फंक्शन और फंक्शनरीज के संदर्भ में स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. अरूण चतुर्वेदी ने स्थानीय शासन को स्वायत्त बनाना आवश्यक है अन्यथा लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की अवधारणा केवल आदर्श बन कर रह जाएगी। उन्होंने स्वयं सेवी संगठनों और जन सहभागिता के सम्मिलित प्रयास तृणमेल स्तर के विकास का सूत्र बताया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बडौदा विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. पी. एम. पटेल थे। धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी के संयोजक डा. मनोज राजगुरू ने किया एवं डा. सरस्वती जोशी ने संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
संगोष्ठी के संयोजक डा. मनोज राजगुरू ने बताया कि समापन समारोह से पूर्व हुए दो तकनीकी सत्रों में मीडिया स्वयं सेवी संगठन तथा प्रशासनिक और वित्तीय संदर्भ के तहत तृणमूल स्तरीय विकास पर विभिन्न शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। दोनों सत्रों की अध्यक्षता प्रो. पी. एम. पटेल और डा. सी. आर. सुथार ने की।