मंथन नहीं अब रोकथाम की जरूरत
उदयपुर। प्रख्यात पर्यावरणविद पद्मभूषण, रेमन मेगसेसे पुरस्कार से सम्मानित चंडीप्रसाद भट्ट ने कहा कि औद्योगिकीकरण विकास नगरीकरण एवं जनसंख्या की अधिकता के साथ वृक्षों, जलाषयों, नदियों, झीलों, पर्वतों तथा खेतीहर पशु पक्षियों का तीव्र गति से हास हुआ है। इसके कारण जलवायु भूस्खलन ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण भी बढ़ा है।
वे सोमवार को जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्व विद्यालय के प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में चल रहे 21 दिवसीय रिफ्रेशर कोर्स में प्राध्यापकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंंने कहा कि साथ ही ग्लोबल वार्मिगं के साथ साथ लोकल वार्मिगं भी हुआ है। जनसंख्या की अधिकता का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है क्योंकि जनसंख्या वृद्धि एवं पर्यावरण का एक दूसरे से निकट का संबंध है। खगोलीय घटना मौसमी घटनाओं के कारण भूकंप, बाढ़, भूस्खलन, सूखा आदि पड़े हैं। इससे पृथ्वी का तापमान बढा, ग्लेशियर पिघले, समुन्द्र का जलस्तर बढ़ा और विभिन्न प्रतिकूल प्रभाव परिणाम सामने आये जिसको हमें आज से ही व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से प्रयास करने होंगे। अध्यक्षता रजिस्ट्रार प्रो. सीपी अग्रवाल ने की। विशिष्ट अतिथि पीजी डीन प्रो. प्रदीप पंजाबी थे। कोर्स ससमन्वक डॉ. युवराज सिंह राठौड़ ने बताया कि प्रो. केएस गुप्ता ने भी समारोह में संबोधित किया।
प्रभावी सरकारी प्रयास हो : भट्ट ने बताया कि सरकार सबसे पहले संवेदनशील हिमालय क्षेत्रों को चिन्हित कर उनका संरक्षण करें। हिमालय के क्षेत्रों में संवेदनशील बडे बडे ग्लेशियर झीलों को चिन्हित कर उन पर नजर रखें। उन्होने कहा कि केदारनाथ त्रासदी ग्लेशियर के पिधलने तथा अंधाधुध पेडों के काटने से भुस्खलन होने के कारण यह त्रासदी हुई थी। सरकार बड़ी बड़ी परियोजनाएं बनाने से पहले पर्यावरण संरक्षण का कार्य करे क्योंकि पानी मशीन से नही बनता है वो तो हमें प्रकृति से प्राप्त होता है।
भावी पीढी समझे अपनी जिम्मेदारी : भट्ट ने कहाकिउदयपुर व राजस्थान के संदर्भ में उदयपुर जिला अरावली पहाडी क्षेत्र होने के कारण यहां पर हो रहे खनन पर रोक लगे। यदि खनन जरूरी भी हुआ तो लोगों पर उस खनन का प्रभाव नही पड़े। अरावली की प्राकृतिकता बनी रहे यहा के राजा महाराजाओं ने नदियों व तालाबों का निर्माण किया जिसके संरक्षण की जिम्मेदारी आने वाली पीढी पर है।