श्रीराम कथा में होगा राम विवाह का प्रसंग
udaipur. महाकालेश्वर मन्दिर प्रांगण में श्री दक्षिण मुखि श्री मंशापूर्ण हनुमान मन्दिर प्रांगण में श्री राम भक्त उपासक मण्डल की ओर से आयोजित श्रीराम कथा में नौ वर्षीय बाल सन्त प्रियांशु महाराज ने कहा कि राम तो स्वयं प्रभु हैं और चरित्र मनुष्य मात्र के लिए सरल, सुगम, सुलभ हैं वही राम चरित्र है। माता- पिता और गुरू का सम्मान तथा उनकी आज्ञा का पालन कैसे किया जाता है यह प्रभु श्री राम से सीखना चाहिये। प्रभु श्रीराम प्राणी मात्र का सम्मान करते थे। शास्त्रों में भी उल्लेख है कि बड़ों का सम्मान करने से सन्मति अपने आ आ जाती है। उन्होंने कहा कि श्रीराम एक आदर्श पुत्र हैं, वह एक आदर्श भाई हैं, उनका जीवन ही आदर्श है।
श्रीराम जन्म प्रसंग के बारे में कथा में बाल सन्त ने कहा कि गुरू वशिष्ठजी ने प्रभु का नामकरण किया और कहा जो आनन्द का महासागर है, जिसका नाम लेने मात्र से सारे कष्टों का निवारण हो जाता हो, जिसके नाम में ही सुख मिलता हो वही राम है, जो हमेशा अपने लक्ष्य पर अडिग रहे वही लक्ष्मण हैं।
श्रीराम की शिक्षा-दीक्षा को आम-जन के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बताते हुए बाल सन्त ने कहा कि गुरू के प्रति प्रभु श्रीराम की जो लगनशीलता थी, ज्ञान के प्रति जो जिज्ञासा थी, सीखने की जो ललक थी, एकाग्रता थी, नियमितता और अल्पाहार, तथा निद्रा में भी चेतना थी वैसी आज के विद्यार्थियों में देखने को नहीं मिलती है। अगर रामचरित्र को मानव मात्र अपने मन में बसा ले तो जीवन के सारे कष्टों से मुक्ति पा सकता है। बाल सन्त ने कहा कि आज के विद्यार्थी व्यसन और आपराधिक कामों की ओर अग्रसर हो रहे हैं ऐसे में राम चरित मानस ही उन्हें संस्कार दे सकती है।
सन्त ने कहा कि यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कितने लोग राम कथा सुनने आ रहे हैं बल्कि महत्वपूर्ण यह है कितने लोगों में राम चरित्र मानस हैं। आज हमारी संस्कृति की तीनों महत्वपूर्ण चीजें बिगड़ती जा रही है। भाषा, भूषा और भोजन। हमें जीवन में राम चरित मानस का अनुसरण करते हुए इन चीजों को सुधारना होगा। बाल सन्त के संरक्षक काशीदास महाराज ने बताया कि बुधवार को राम विवाह कथा प्रसंग होगा।
मण्डल के चेतन जेठी, कमल चन्द्र चौहान तथा प्रवीण शर्मा ने बताया कि मंगलवार को व्यासपीठ की पूजा महन्त शनि मन्दिर के नारायण गिरीजी महाराज, महन्त मुरली मनोहर, अतिथियों में नाथूसिंह, संजय कोठारी, अशोक कोठारी तथा शिशिरकान्त वाष्णेय आदि ने की।