प्रज्ञा दिवस के रूप में मनाया आचार्य महाप्रज्ञ का जन्मदिवस
उदयपुर। व्यक्ति में विकास की असीम संभावनाएं हैं। आत्म विष्वास, समर्पण और जागरूकता के साथ यदि व्यक्ति कुछ काम करें तो कुछ भी असंभव नहीं है। मुनि नथमल यानी आचार्य महाप्रज्ञ इसके सशक्त उदाहरण हैं जिन्होंने अपने जीवन काल का सबसे बड़ा अवदान प्रेक्षाध्यान के रूप में दिया।
ये विचार शासन श्री मुनि राकेश कुमार ने व्यक्त किए। वे रविवार को आचार्य महाप्रज्ञ के 96 वें जन्म दिवस पर सौ फीट रोड स्थित अशोक-पीयूष जारोली के नए आवास पर आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि 10 वर्ष की अवस्था में मंद बुद्धि के नाम से पहचाना जाने वाला नत्थू बाद में मुनि नथमल और फिर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाप्रज्ञ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। आचार्य तुलसी के विचारों को अमली जामा पहनाने का काम आचार्य महाप्रज्ञ ने किया। आचार्य तुलसी सिर्फ विचार रखते थे तब तक आचार्य महाप्रज्ञ उन कामों को साक्षात कर देते थे।
अपनी माता के साथ भागवती दीक्षा लेने वाले नत्थू ने एकाग्रता, गुरु के प्रति निष्ठा एवं लक्ष्य के प्रति समर्पण रखा और इस मुकाम पर पहुंचे। दीक्षा लेने के 8 वर्ष बाद ही उन्होंने आगम कंठस्थ किए। ग्रहण शक्ति और मेमोरी का विकास भी हो सकता है, आचार्य महाप्रज्ञ इसका साक्षात उदाहरण हैं। संस्कृत से हिन्दी में आगमों का विवेचन करने वाले आचार्य महाप्रज्ञ के पास हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी का पत्र आया जिसमें उन्होंने लिखा कि आगम का इतना सुंदर और सरल भाषा में विवेचन पढक़र मैं अभिभूत हूं। काशी-बनारस में जब उनके भाषण हुए तो लोगों ने दांतों तले अंगुली दबा ली। उनका सबसे बड़ा अवदान प्रेक्षाध्यान है। श्वास प्रेक्षा, कायोत्सर्ग का नियमित अभ्यास करना चाहिए।
मुनि सुधाकर ने कहा कि अगर आपकी श्रद्धा में दम है तो भगवान आपसे कदापि दूर नहीं है। आचार्य महाप्रज्ञ को निकट से देखा। वे योगी होते हुए भी शिष्यों के प्रति मस्त रहते थे। उनका जीवन दर्शन निर्लिप्त था। सरस्वती उनके कंठ में विराजमान थी। आत्मा से महात्मा और फिर परमात्मा जब बनते हैं तो वे महाप्रज्ञ होते हैं। उनके जीवन से तीन बातें मैंने सीखीं जो गुरु के प्रति समर्पण हो, कोई भी कितना भी आपका अनिष्ट करे लेकिन बदले में आप कुछ मत करो और सदैव हर पल विद्यार्थी बन कर रहो। कुछ न कुछ सीखनें की ललक हो। आचार्य महाप्रज्ञ के लिए कितने ही षडयंत्र रचे गए, कितना ही विरोध हुआ लेकिन उन्होंने किसी का अनिष्ट नहीं किया।
मुनि दीप कुमार ने कहा कि आचार्य का सम्पूर्ण जीवन ही प्रज्ञामय था। आचार्य कालू गणी एवं आचार्य तुलसी के प्रति उनकी गुरु निष्ठा बेजोड़ थी। आचार्य तुलसी ने पद छोड़ा और उन्हें पदासीन किया। गुरु के सामने शिष्य का गुरु की कुर्सी पर बैठना अपने आप में एक विलक्षण घटना है। विद्वता और विनम्रता के प्रतीक आचार्य महाप्रज्ञ थे। इन दोनों का जिसमें समावेश हो, वह शिखर का आरोहण करता है।
इससे पूर्व तेरापंथी सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत, युवक परिषद अध्यक्ष दीपक सिंघवी ने कहा कि जीवन विज्ञान जैसी आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण विश्व को संचारित करने वाले आचार्य महाप्रज्ञ की जीवन शैली वैज्ञानिकपूर्ण थी। इसके साथ ही आध्यात्मिक ऊर्जा से भी वे सराबोर करते थे। आचार्य तुलसी के अवदानों को आगे बढ़ाया। गुजरात में साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान उन्होंने वहां से अहिंसा यात्रा निकाली और लोगों से समझाइश की जिसके फलस्वरूप वहां शांति का वातावरण बना। हम उनके आदर्शों पर चल सकें, यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
इससे पूर्व तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के अध्यक्ष हीरालाल कुणावत ने भी विचार व्यक्त किए। आरंभ में शासन श्री मुनि राकेश कुमार के नमस्कार महामंत्र से आरंभ हुए कार्यक्रम में शशि चव्हाण व सरिता कोठारी ने गीतिका प्रस्तुत की। संचालन सभा के मंत्री सूर्यप्रकाष मेहता ने किया। आभार दीक्षा जारोली ने व्यक्त किया।