पांचवे दिन मनाया अणुव्रत चेतना दिवस
उदयपुर। शासन श्री मुनि राकेश कुमार ने कहा कि आज के इस युग में संयम की चेतना का जागरण होना चाहिए। क्या करना और क्या नहीं करना स्वयं के लिए उचित या अनुचित है, इस पर खुद को विचार करना चाहिए।
वे जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा की ओर से अणुव्रत चौक स्थित तेरापंथ भवन में पर्वाधिराज पर्यूषण के पांचवे दिन अणुव्रत दिवस पर धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर उचित-अनुचित में हम फर्क नहीं कर पाए तो पषु और मानव में कोई फर्क नहीं रह जाएगा। अच्छे इंसान के लिए दुर्व्यसन का त्याग जरूरी है। जिसे ये दुर्व्यसन लग जाए तो उसका पतन निष्चित है। यम, नियम, योग, प्राणायाम कैसे कर सकते हैं, इस पर विचार करना चाहिए। हर परिस्थिति को समभाव से संभालना है। इंद्रिय संयम व्रत चेतना के साथ जरूरी है। व्रत चेतना जरूरी है अन्यथा स्वार्थवाद टकराता है। स्वार्थों का त्याग जरूरी है नहीं तो परिवार में टकराव-बिखराव हो जाता है।
भगवान महावीर ने व्रत, महाव्रत का प्रतिपादन किया। आचार्य तुलसी को अणुव्रत का प्रतिपादक इसलिए कहा जाता है कि उन्होंने इन्हें जीवन के साथ जोड़ने का प्रयास किया। मुनि दीप कुमार ने ‘बदलें युग की धारा, नई दीप्ति हो, अणुव्रतों के द्वारा’ गीतिका सुनाते हुए कहा कि जिस प्रकार तालाब की सुरक्षा के लिए पाल बनाई जाती है ठीक उसी प्रकार अहिंसा अणुव्रत के 5 व्रत दिए जो पाल का काम करते हैं। अधिकार मत छीनो, सत्य मत हड़पो। इन्द्रियों का संयम करो। इच्छाओं को सीमित करो। गृहस्थ के लिए पांचों नियम आवष्यक है। धार्मिकता की ओट में आज नैतिकता छिपा देते हैं। ये धर्म के साथ धोखा है। जहां नैतिकता नहीं, वहां धार्मिकता नहीं हो सकती। आचार्य तुलसी महावीर की वाणी के आधार पर इन अणुव्रत का प्रतिपादन किया। प्रत्येक व्यक्ति में अणुव्रत नैतिकता की चेतना जाग जाए। लोग तो भगवान के साथ भी धोखा कर जाते हैं।
मुनि सुधाकर ने कहा कि जीवन में पांच पी पावर, प्रेक्टिस, प्लेजर, पोजीषन एवं पर्सनालिटी की आवष्यकता मानी जाती है लेकिन इस पांच में एक और पी प्योरिटी जुड़ जाए तो जीवन सफल हो जाता है। जो भी हो, पवित्रता के साथ हो। व्रत की चेतना का विकास कैसे हो, इस पर ध्यान जरूरी है। शरीर अनित्य है लेकिन आत्मा अजर अमर है। भगवान महावीर ने बताया कि धर्म आगार और अणगार दो प्रकार के होते हैं। आगार धर्म में पंच महाव्रत का रास्ता है जो साधु जीवन के लिए है वहीं अणगार धर्म श्रावक-श्राविकाओं के लिए है जिसमें 12 व्रतों की पालना जरूरी बताई गई है। अध्यात्म का प्रथम सोपान अणुव्रत है। भगवान महावीर का कहना था कि जैसा तुम्हें ठीक लगे, वही करो लेकिन जल्दी करो। उस काम को करने में देरी मत करो। छोटे छोटे नियमों से व्रतों का उद्धरण होता है, वह अणुव्रत कहलाता है। इच्छाओं का परिष्कार करें, अणुव्रत की चेतना का विकास करें। इच्छाओं का संयम बहुत मुष्किल है। धर्म का प्रगति से कोई विरोध नहीं लेकिन प्रति के साथ आध्यात्मिक भी होना चाहिए। आज जरूरत है अध्यात्म को जानने, समझने और सीखने की।
तेरापंथ सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने बताया कि भगवान महावीर के जन्मकल्याणक के 27 भवों का राकेष मुनि के मुखारविंद से वाचन चल रहा है। समाज के विकास कार्यों में श्रावक-श्राविकाओं ने बढ-चढ़कर भागीदारी दिखाई है। नेपाल जाने वाली स्पेषल ट्रेन का पंजीयन भी जोर-षोर से चल रहा है। संचालन मंत्री सूर्यप्रकाष मेहता ने किया। इससे पूर्व 9 से 9.30 बजे तक संगीता पोरवाल ने प्रेक्षाध्यान के प्रयोग एवं जप कराए। प्रारंभ में सुनीता बैंगानी के नेतृत्व में ज्ञानषाला की प्रषिक्षिका बहनों ने मंगलाचरण किया।
तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष दीपक सिंघवी ने बताया कि आध्यात्मिक रात्रिकालीन प्रतियोगिता के तहत जैन हाउजी का कार्यक्रम हुआ। प्रतियोगिता में जैन धर्म के तीर्थंकरों, सोलह सतियों, तेरापंथ के आचार्यों, साध्वी प्रमुखाओं पर आधारित इस जैन हाउजी में खासी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने हिस्सा लिया। विजेता प्रतिभागियों को तेरापंथी सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत, उपाध्यक्ष अर्जुन खोखावत एवं मंत्री सूर्यप्रकाष मेहता ने पारितोषिक प्रदान किए। विजयसिंह अशोक डोसी द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम का संयोजन गजल खोखावत, वैभव जैन एवं भावेश सिंघवी ने किया।