उदयपुर। जावर में शुद्ध जस्ता प्रगलन के प्राचीनतम प्रमाण हैं। जस्ता बनाने के लिए जिन मूंसों का प्रयोग हुआ वह हमारी धरोहर है। यह विचार श्री हरिहर विष्णु पालीवाल, पूर्व निदेशक, हिन्दुस्तान जिंक ने साहित्य संस्थान में विश्व धरोहर सप्ताह के अन्तर्गत आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि जावर में 1812 तक प्राचीन खाने चलती थी तथा शुद्ध जस्ते का निर्माण किया जाता था उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जावर की भट्टियाँ दुनिया के प्राचीनतम जस्ता निर्माण का कारखाना था। अध्यक्षता करते हुए प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत कुलपति, राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर ने कहा कि धरोहर के मूर्त और अमूर्त रूपों को बचाना आवश्यक है। हम अपनी परम्परा के साथ जीते हैं, जो धरोहर है। अतः धरोहर हमारी प्राण वायु जैसी है। इसे बचाना आवश्यक है। संगोष्ठी के विशिष्ठ अतिथि के रूप में बोलते हुए ललित गुर्जर पूर्व प्रबंधक, हिन्दुस्तान जिंक ने जावर के भूगर्भ को समझाया तथा स्पष्ट किया कि मेवाड़ दुनिया के दस महत्वपूर्ण स्थानों में शामिल है, जहा भूगर्भ में धातु का विशाल भण्डार है। संगोष्ठी में डॉ. अरविन्द कुमार की पुस्तक जावर का इतिहास का लोकार्पण किया गया। इस पुस्तक में जावर के मंदिरों, मूर्तियों अभिलेखों का समग्र विवरण प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने अपने शोध कार्य से स्पष्ट किया कि जावन का प्रचीन नाम साम नगर था। इसके अलावा योगिनी पट्टन जाउरा, जौपुरा नाम भी मिलते है जावर पर इस तरह का अध्ययन एक मौलिक कार्य है जिसकी उपस्थित विद्वानों जैसे ब्रजमोहन जावलिया, डॉ. राजशेखर व्यास आदि ने प्रशंसा की।
संगोष्ठी में स्वागत उद्बोधन प्रस्तुत करते हुए संस्थान निदेशक प्रो. जीवन सिंह खरकवाल ने स्लाइड शो के माध्यम से धरोहर के विभिन्न आयामों यथा प्राकृतिक एवं मानव निर्मित धरोहर को स्पष्ट किया। मानव निर्मित धरोहर में मंदिर, बावड़ियाँ, स्मारक आदि के अतिरिक्त उन्होंने पारंपरिक ज्ञान तथा परम्पराओं का जिक्र किया तथा जावर को विश्व धरोहर स्थल घोषित करने का प्रस्ताव भी रखा।
संगोष्ठी का संचालन करते डॉ. कुलशेखर व्यास ने कहा साहित्य संस्थान में धरोहर से सम्बन्धित अनेक शोध परियोजना चल रही है। जिनको राज्य सरकार तथा केन्द्र सरकार के सहयोग की नितांत आवश्यकता है साथ ही संस्थान के डॉ. महेश आमेटा कहा कि जो प्राचीन उद्यान बाग-बगिचों में फुवारों आदि को बचाया जाये। संगोष्ठी में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. कृष्णपालसिंह ने किया। संगोष्ठी में शहर के प्रबुद्ध नागरिको के साथ विभिन्न विद्वानों ने भाग लिया जिन्में डॉ. ब्रजमोहन जावलिया, डॉ. राजशेखर व्यास, प्रो. पी.एस. राणावत, डॉ. ललित पाण्डेय, डॉ. शक्तिकुमार शर्मा, डॉ. जी.एन. माथुर, डॉ. हेमेन्द्र चौधरी, डॉ. धीरज जोशी, डॉ. युवराज राठौड़, भरतलाल आचार्य, संगीता जैन, वन्दना चौधरी, विष्णु पालीवाल, नारायण पालीवाल, रोहित मेनारिया, शोयब, आरती हांडा, कृष्णपाल वर्मा, आदि ने भाग लिया।