राज्यस्तरीय ‘‘नाट्य एवं कला शिक्षा ‘‘ पर कार्यशाला
उदयपुर। ऐश्वर्या एज्यूकेशन संस्थान में एक दिवसीय राज्य स्तरीय ‘‘नाट्य एवं कला शिक्षा ‘‘ पर कार्यशाला आयोजित की गई। जिसमें राजस्थान के विभिन्न शिक्षक महाविद्यालयों के लगभग 100 प्राचार्य,प्राध्यापकों एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया।
कार्यशाला के समन्वयक ऐश्वर्या शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. कय्यूम अली बोहरा ने बताया कि ‘शिक्षकों के लिए शिक्षा में कला एवं नाट्य ‘ विषय पर कार्यशाला में कुल तीन सत्र रखे गए थे। कार्यशाला के मुख्य अतिथि प्रो. शैल चोयल ने कहा कि शिक्षक का कत्र्तव्य है कि वह बालक की सृजनशीलता को पहचानें,उसे उत्साहित करें,उसे स्वतंत्रता दें। कलाकार वह है जो सृजन करें। बालक अपने आप को विभिन्न भाव-भंगिमओं द्वारा अभिव्यक्त करता है, शिक्षक को बालक की अन्तर्निहित पूर्णतद को देखना है यही एक सच्चे शिक्षक का मकसद है। इस अवसर पर शिक्षा संकाय की अधिष्ठाता प्रो. साधना कोठारी ने कहा कि कला ,संस्कृति और संगीत आपस में जुडे हुए है और यही व्यक्तित्व को निखारती है। यदि किसी विषय में विज्ञान के साथ कला नही है तो उस विषय में निरसता या सूखापन आ जाएगा। नाट्क द्वारा हम शिक्षक समाज को जागरूक कर सकते है। डॉ. कय्यूम अली बोहरा ने बी. एड. पाठ्यक्रम में निहित ‘‘नाट्य एवं कला षिक्षा‘‘ के बारे में विस्तार से समझाया। विषय विशेषज्ञ राजा राम व्यास द्वारा शिल्प एवं दृश्य कला का प्रयोग शिक्षा में किस प्रकार किया जाता है इसके बारे में प्रतिभागियों को अवगत करवाया गया तथा साथ ही कोलाज, चित्रकला एवं प्रिन्ट मीडिया से संबंधी सामग्री के माध्यम से अभ्यास करवाया गया,कि वे उसे किस प्रकार प्रस्तुत कर अपने को अभिव्यक्त कर सकते है।
कार्यशाला के तृतीय सत्र में विषय विषेषज्ञ दीपक जोशी द्वारा प्रतिभागियों को संगीत एवं नृत्य कलाओं का प्रयोग कर शिक्षा को प्रभावी बनाने के बारें में विस्तार से समझाया। उन्होंने बताया कि कला के माध्यम से कुछ भी सीखाओं किन्तु वह भय मुक्त होना चाहिए एवं जीवन के यथार्थ में जो कुछ हमारे पास है उस पर चिंतन व मनन करना चाहिए ।
चतुर्थ सत्र में विषय विशेषज्ञ विलास जानवे द्वारा रंगमंचीय कला (श्रव्य एवं दृश्य) द्वारा किस प्रकार शिक्षा को बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है, इसकी जानकारी दी गई। उन्होंने साहित्य के नौ रसों के माध्यम से भाव-भंगिमाओं से अवगत कराया। अपने दैनिक जीवन में हम इनका प्रयोग कैसे व किस प्रकार करते है इसकी जानकारी प्रदान की। उन्होंने बताया कि हम अपने दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार के अभिनय का प्रयोग करते है उनका नाट्य रूपान्तर (अभिनय) कर बताया गया। उपरोक्त सभी साधनों का प्रयोग कर सुविधादाता शिक्षण को अधिक प्रभावी एवं रूचिपूर्ण बना सकता है। समापन में धन्यवाद की रस्म एवं स्मृति चिन्ह प्राचार्य डॉ. कय्यूम अली बोहरा द्वारा प्रदान किया गया।