चन्द्रावती में सुरभि लेख करवाता था राज आज्ञा पालन
उदयपुर। मौजूद शासन में व्यवस्था कायम करने के लिए नियम कायदों को फेहरिस्त बढ़ती व्यवस्था कायम करने के लिए नियम कायदों को फेहरिस्त बढ़ती जा रही है परन्तु एक जमाना ऐसा भी था जब सुरभि लेख राज आज्ञा की अनिवार्य पालना का संविधान था। आबू रोड़ स्थित पुरातन चन्द्रावती जगरी की खुदाई के दौरान अवशेषों में मिला सुरभि लेख बताता है कि करीब सात सौ वर्ष पूर्व तक यह व्यवस्था यहां भी लागू रही।
चन्द्रावती के उत्खनन में मिला यह प्रस्तर स्तंभ विक्रमी संवत 1325 का है। यहा खुदाई करवा रहे जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. जीवनलाल खरकवाल ने बताया कि कई जगह पुरा महत्व का खुदाई में इस तरह के सुरभि लेख मिले है। यह राज आज्ञा की पालना करवाने के लिए जनता के लिए आदर्श स्तंभ हुआ करते थे। इसके अनुसार राज आज्ञा का उल्लंघन गोहत्या के समान पाप माना जाता था। उन्होंने बताया कि सम्राट अशोक के काल में अलग तरह के स्तंभ होत थे परन्तु इस लेख को देखकर यह लगता है कि यह परमारों के शासन काल का है।
श्वेत पत्थर पर बना है : गाय के मुख की आकृति वाले इस प्रतिमा के नीचे अस्पष्ट लेख है। इस प्रस्तर प्रतिमा में गाय अपने बछडे को दूध पिलाती हुई दिखती है। इसलिए इस गाय को सुरभि नाम से सम्बोधित किया जाता है।
पुराने समय में भी सिग्नेचर : यहां शोध कर रहे हरियाणा रोहतक के निवासी प्रांजल गर्ग ने बताया कि अपनी कृति के साथ अपने हस्ताक्षर की परम्परा भी हजारों साल पुरानी है। उन्होनें बताया कि चन्द्रावती के अवशेषों में भी तत्कालीन कलाकारों या ड्राफ्टमेन की ओर से अपने हस्ताक्षर छोड़ने की शैली मिली है।
तीसरे चरण की खुदाई : चन्द्रावती में अभी तीसरे चरण की खुदाई का कार्य चल रहा है। निदेशक प्रो. खरकवाल के निर्देशन में रोहित मेनारिया, नारायण पालीवाल, डॉ. के.पी. सिंह, वैशाखी सेन गुप्ता, पूर्वा भाटिया, आदि शोधार्थी यहां रिसर्च कर रहे है। यहां खुदाई कर रहे शोधार्थी ने बताया कि पश्चिम भारत की इस अनूठी साइट की विशेषता यह है कि विभिन्न परतोें में लगतार संस्कृति के अवशेष मिल रहे है। अन्य जगह ऐसा नहीें है। यहां एक के बाद दूसरी पीढी ने लगातार पुनरूद्धार अथवा नवनिर्माण किया है, जिससे इस प्राचीन नगरी में कई संस्कृतियां उत्खनन में एक साथ मिल रही हैं।