झील संरक्षण विषयक संवाद
उदयपुर। झीलों के किनारों , घाटों एवं भीतर शौच विसर्जन खतरनाक है जिसके तात्कालिक एवं दूरगामी गंभीर दुष्प्रभाव है। यह चिंता रविवार को झील मित्र संस्थान , झील संरक्षण समिति एवं डॉ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के साझे में हुए झील संरक्षण विषयक संवाद में जताई गई।
डॉ अनिल मेहता ने कहा कि जल स्त्रोत में शौच विसर्जन एक गंभीर सामाजिक, पर्यावरण एवं जनस्वास्थ्य सम्बन्धित आपदा है। झीलों पर शौच निवृति एक दुष्प्रवृत्ति है जिसे समझाइश तथा दंड , दोनों के प्रयोग से ही दूर किया जा सकता है।
तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि मानव एवं पशु मल में लाखो करोडो की तादाद में बेक्टेरिआ तथा वायरस होते है। इनका पेयजल की झीलों में सीधा मिलना कई संक्रामक रोगों का मूल कारण है। प्रशासन को इसके निराकरण की दिशा में तुरंत ठोस कदम उठाने होंगे।
नन्द किशोर शर्मा ने कहा कि मानव-पशु मल, साबुन,डिटरजेंट एवं अन्य कचरा मिलकर एक ऐसा जहरीला सम्मिश्रण (कॉकटेल) बनाते है जिसे फ़िल्टर प्लांट दूर नहीं कर पाते। इसका समाधान प्रभावी रोक में ही है।
श्रमदान : झील मित्र संस्थान, झील संरक्षण समिति व डॉ मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के सांझे में आयोजित पिछोला के अमरकुंड झील क्षेत्र से बड़ी मात्र में जलीय घास ,रोटिया,प्लास्टिक बॉटल्स,पोलथिन सहित घरेलू कचरा निकाला । श्रमदान में रमेश चंद्र राजपूत,दुर्गा शंकर पुरोहित,ललित पुरोहित,राम लाल गेहलोत,गरिमा,दीपेश,भावेश ,हर्षुल,तेज शंकर पालीवाल,डॉ अनिल मेहता व नन्द किशोर शर्मा ने भाग लिया ।