तेरापंथ जीवन में सम्मान समारोह
उदयपुर। साध्वी कीर्तिलता ने कहा कि व्यक्ति भाग्यशाली होता है जिसे तीन मां माता, महात्मा और परमात्मा मिलती है। संतान की सबसे पहली पाठशाला मां की गोद होती है।
वे रविवार को श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा बिजौलिया हाउस स्थित तेरापंथ भवन में आयोजित प्रतिभागी सम्मान समारोह को संबोधित कर रही थी। उन्होंने कहा कि मां संस्कारों की जननी है। 64 व 68 तीर्थों की परिक्रमा करें या नहीं, लेकिन मां की परिक्रमा जरूर करें। उन्होंने कहा कि संसार में मां की ममता को तौलने का कोई बटखरा नहीं मिलता क्योंकि मां की ममता, मां का वात्सल्य सागर से भी अथाह होता है। इसलिए मां को कभी मत ठुकराओ।
साध्वी शांतिलता ने कहा कि संतों की संगत उस इत्र के समान होती है जिसे भले ही बदन पर न लगाएं लेकिन उसकी महक से दिल जरूर आनंदित होता है। साध्वी पूनमप्रभा ने मधुर गीतिका प्रस्तुत की। साध्वी श्रेष्ठप्रभा ने कहा कि जीवन में अच्छी संगत, उंचा लक्ष्य एवं गहरी साधना जरूरी है। संगत का प्रभाव जीवन को प्रभावित करता है।
समारोह में जैन विश्व भारती लाडनूं द्वारा आयोजित जैन विद्या परीक्षा, आगम मंथन प्रतियोगिता एवं जीवन विज्ञान परीक्षा के सफल प्रतिभागियों को सम्मान तेरापंथ सभाध्यक्ष सूर्यप्रकाश मेहता, केंद्र व्यवस्थापक अशोक कच्छारा, ताराचन्द सिंघवी ने प्रदान किया। तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष राकेश नाहर, मण्डल अध्यक्षा चन्द्रा बोहरा एवं शशि चव्हाण ने प्रशस्ति-पत्र एवं पारितोषिक प्रदान किए। संचालन सुबोध दुगड़ ने किया।