राजस्थान विद्यापीठ : साहित्य संस्थान विभाग की हीरक जयंती
तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ उद्घाटन
उदयपुर। भारतीय संस्कृति के अभूतपूर्व दर्शन दक्षिण एशिया के अनेक देशों यथा इन्डोनेशिया थाइलैंड, वियतनाम कम्बोडिया लाउस, इत्यादि में अभूतपूर्व दर्शन होेते हैं। इनमें से कुछ देशों में आंगन में तुलसी तथा घरों में गणेश गरुण की प्रतिमा देखने को मिलती है क्योंकि वेद विश्व के सर्व प्राचीन अमूल्य धरोहर है।
जो अथाह ज्ञान एवं विज्ञान का भंडार है जो हमें भेद भाव की भावना से दूर रखते है एवं समाज को सद्शिक्षा व सद् संस्कार देने के लिए प्रेरित करते है। ये विचार सोमवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक साहित्य संस्थान के तीन दिवसीय हीरक जयंती समारोह के उद्घाटन समारोह में दिल्ली विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. योगानन्द शास्त्री ने मुख्य अतिथि के रूप में व्यटक्त किए।
अतिथियों का स्वागत करते हुए कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने सस्थान के स्थापना से लेकर वर्तमान तक सम्पादित कार्यो की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि संस्थान ने पुरातत्व के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई है। साथ ही हिन्दी एवं राजस्थानी एवं संस्कृत में भी उल्लेखनीय कार्य किए हैं। विषय प्रवर्तक के रूप में विचार व्यक्त करते हुए डेक्कन कॉलेज पुणे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वीएस शिन्दे ने कहा कि हमारे लिए पाम्परिक एवं तकनीकों का ज्ञान अत्यंत आवश्यक है। तथा हमें हडप्पा सभ्यता से लेकर निरंतर विकास, जलवायु एवं पर्यावरण के परीपेक्ष में उचित तरीके से सझना होगा। मेवाड़ पुरातत्व की दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण है। मेवाड में एक ही नही कई मानव सभ्यताओं को यहां देखा गया हैं आहड़, बालाथल, गिलुंड, छतरीखेडा, पछमता के साथ कई अन्य पुरातत्व स्थल भी यहां की पुरातत्व की विपुलता के जीवंत प्रमाण है।
विशिष्ट अतिथि पूर्व निदेशक डॉ. ओसी हांडा ने कहा कि हमें पुरातत्व को जीवाश्म नहीं समझना चाहिए। हम लाखों वर्षों की यात्रा के पश्चात भी अनेक पाषाण उपकरणों को वर्तमान में भी उपयोग कर रहे है। हमें मानव विकास की यात्रा को निरंतरतता को समझना होगा इसका इतिहास की सभी कडियों से जोड़ना भी होगा। अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति एचसी पारख ने कहा कि संस्थान द्वारा 1945 में आयोजित अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का बड़ा महत्व है क्योंकि उसी सम्मेलन में हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने की नींव रखी। उन्होंने कहा कि शोध को ऐसे स्तर पर ले जाना होगा जिसे हमें यूरोप व अमरीका के शोध संस्थान के समकक्ष खडे हो सके। समरोह का संचालन डॉ. कुलशेखर व्यास एवं निखिल श्रीवास्तव ने किया जबकि धन्यवाद निदेशक प्रो. जीवन सिंह खरकवाल ने दिया।
पूर्व कार्यकर्ताओं का सम्मान : समारोह में साहित्य संस्थान में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पूर्व कार्यकर्ताओं का अतिथियों द्वारा माला, उपरणा, शॉल व पगड़ी पहना कर सम्मानित किया गया।
पुस्तकों का विमोचन : साहित्य संस्थान के हिरक जयंति समारोह में संस्थान के 1941 से लेकर 2016 तक किये गये कार्यों की पुस्तक हीरक जयंति स्मारिका एवं शोध पत्रिका, राव गणपत सिंह चीतनवाना द्वारा रचित अग्निवंशियों का मूल इतिहास, डॉ. कुलशेखर द्वारा रचित मेवाड़ का पुरातत्व और स्थापत्य, डॉ. ओसी हांडा द्वारा रचित धरती के रंग, प्रो. बसंत शिंदे द्वारा रचित चालकोलिथिक टेक्नोलोजी की पुस्तकों का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।
उद्घाटन सत्र के पश्चात तीन समानान्तर संगोष्ठियों का आयोजन किया गया जिसमें इतिहास पुरातत्व विभाग द्वारा भाषा संस्कृति एवं तकनीकों का उद्गम, संस्कृत विभाग द्वारा वेदों में राष्ट्रीय चिंतन हिन्दी राजस्थान विभाग द्वारा हिन्दी राजस्थानी का अर्वाचित साहित्य विषयक चर्चा की गई जिसमें 45 शोध-पत्रों का वाचन किया गया। राष्ट्रीय सेमीनार के पहले दिन देश के विभिन्न राज्यों से आये शिक्षाविद्, पुरातत्वविद् एवं साहित्यकारों ने भाग लिया।