विद्या भवन के दल ने किया अनुसंधान
उदयपुर। हीरा बाग कॉलोनी स्थित एस. एल. चित्तौड़ा निवास पर हुई सेप्टिक टैंक दुर्घटना की तकनीकी जाँच करने सोमवार दोपहर विद्या भवन पॉलीटेक्निक की टीम घटनास्थल पर पहुंची तथा बारीकी से निरीक्षण किया।
पॉलीटेक्निक के प्राचार्य डा. अनिल मेहता के नेतृत्व में भेरूलाल प्रजापत, सुधीर कुमावत, शिवप्रकाश कुर्मी, मनीषा शर्मा व महेन्द्रपाल सिंह के दल ने जाँच व विष्लेषण करने के पश्चात् बताया कि मामूली अज्ञानता तथा गलत सेप्टिक टैंक निर्माण, गलत संधारण व खाली करने की अवैज्ञानिक विधि के कारण चार लोग काल कवलित हो गये।
मेहता ने कहा कि सेप्टिक टैंक 25 से 30 वर्ष पूर्व बना तथा उपलब्ध जानकारी के अनुसार इन तीस वर्षो की अवधि में केवल एक बार खाली किया गया। सेप्टिक टैंक तीन खण्डों वाला है जिसमें प्रत्येक खण्ड की लम्बाई 3 फीट, चौड़ाई 4 फीट तथा गहराई 7.5 फीट है। इसमें पहले चेम्बर में मल आने की व्यवस्था, पहले से दूसरे चेम्बर में जल-मल प्रवाह तथा दूसरे से तीसरे में पानी जाने की व्यवस्था सहित पानी निकासी (आउटलेट) त्रुटिपूर्ण बनाये गये व ऊपर फ्री बोर्ड भी नहीं है। यह सेप्टिक टैंक एक दस सदस्यीय परिवार के लिए निर्धारित सेप्टिक टैंक से डेढ़ गुना ज्यादा बड़ा बनाया हुआ है। सेप्टिक टेंक तीन से पाँच वर्ष की अवधि में खाली किया जाना चाहिये। जबकि उपलब्ध सूचना के अनुसार यह 10 से 15 वर्षों में खाली किया गया। साथ ही निर्माण गुणवत्ता कमजोर होने के कारण सेप्टिक टेंक के पेंदे व किनारों से लीकेज होता रहा। इन सभी कारणों से सेप्टिक टेंक में मल का अपेक्षित उपचार नहीं हो पा रहा था। सेप्टिक टेंक एक खतरनाक गैस चैंबर में बदल चुका था। सेप्टिक टैंक के उपरी सतह व आसपास के निरीक्षण से पता चलता है कि टॉयलेट सफाई में भारी मात्रा में एसिड का इस्तेमाल किया जा रहा था। एसिड की हाईड्रोजन सल्फाईड गैस के साथ अभिक्रिया होकर सब तरफ सल्फर जमा हुआ था और वहां पीले रंग की पपड़िया थी।
समाधान : सेप्टिक टेंक निर्धारित मानकों पर बने। फ्री बोर्ड रखा जाए, इनलेट आउटलेट सही बने। टॉयलेट में हाइड्रोक्लोरिक एसिड का उपयोग नहीं हो। सेप्टिक टेंक से नियमित रूप से निकासी होने वाले पानी पर नजर रहे व सोक पिट टेंक बने। टेंक को हर तीन से पाँच वर्ष में में खाली किया जाए। खाली करते समय पहले गैस डिटेक्टर से जाँच हो, खाली करने वाले कर्मी ऑक्सीजन मास्क, गम बूट व दस्ताने पहने। दल को दुर्घटना प्रबंधन का प्रारंभिक प्रषिक्षण दिया जाए। खाली करने की कवायद दिन में हो। उल्लेखनीय है कि विद्या भवन पॉलीटेक्निक, सीपीआर नई दिल्ली तथा वॉलकेम इंडिया लिमिटेड ने गत वर्ष उदयपुर के सेप्टिक टैंकों पर विषद शोध किया था। जिसमें ज्ञात हुआ कि उदयपुर में प्रायः गलत तरीके से सेप्टिक टैंक बन रहे हैं तथा उनका संधारण त्रुटिपूर्ण है। तीन से पाँच वर्ष की अवधि में खाली होने के स्थान पर 20 से 30 वर्ष में वह भी कोई समस्या आने पर ही खाली हो रहे हैं।