आचार्य जिनदर्शन सुरीश्वर महाराज का हुआ चातुर्मासिक प्रवेश
उदयपुर। आचार्य जिनदर्शन सुरीश्वर महाराज ने कहा कि धर्म हर रूप में मनुष्य का साथी है। दुख-सुख में भी सबसे आगे वहीं उसका सहयोगी बनता है। इसलिये मनुष्य को धर्म का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिये।
वे आज हिरणमगरी से. 4 स्थित शंाति सोमचन्द्र सुरी आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवेश के बाद आयोजित धर्म सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होेंने कहा कि मनुष्य को अपनी गति की सफलता के लिए ईश्वर एवं धर्म का सानिध्य अवश्य लेना चाहिये। जीवन में सम्मान योग्य बनने के लिये धर्म का सहयेाग आवश्यक है और धर्म पाना है तो पाप से निवृत्त होना होगा। मनुष्य सुख के पीछे भगता है। उसे आत्मा को स्थिर बनने के लिये संयम की राह अपनानी होगी।
समारेाह के मुख्य अतिथि चन्द्रसिंह कोठारी ने कहा कि मनुष्य को इस चातुर्मास के दौरान बहने वाली धर्म की नदी का लाभ अवश्य लेना चाहिये। सभी की धर्म में आस्था होनी चाहिये क्योंकि वहीं अंत तक साथ निभाती है। समारोह के विशिष्ठ अतिथि डॉ. शैलेन्द्र हिरण,मनोहरसिंह नलवाया, किरणमल सावनसुखा, राजलोढ़ा, भूपालसिंह दलाल, सीए निर्मल सिंघवी, ललित जारोली थे। जिनका समिति की ओर बाहुमान किया गया।
जिनालय समिति के अध्यक्ष सुशील बांठिया ने बताया कि इससे पूर्व जिनदर्शन सूरीश्वर आदि ठाणा-5 एवं साध्वी हितप्रियाश्री जी म.सा आदि ठाणा-5 का चातुर्मास प्रवेश तुलसी निकेतन से हुआ। जो बैण्ड बाजों एंव शातिनाथ भगवान के जयकारें के साथ साधु-साध्वी वृंद एंव सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं हिरणमगरी से. 4 स्थित जिनालय पंहुचे। वहंा पर प्रातः नवकारसी हुई जिसके लाभार्थी अशेाक-मंजू नागौरी थे। गुरू पूजन की बोली के लाभार्थी सुरेश-डॉ. संदीप जैन थे। अंत में स्वामीवात्सल्य हुआ जिसके लाभार्थी दिनेश-रेखा दावड़ा थे। अंत में धन्यवाद समिति के मंत्री अशोक नागौरी ने ज्ञापित किया।