आचार्य विद्यानन्द मुनिराज प्राकृत वांगमय पुरस्कार से भी नवाजा गया
समारोह में अक्खर पाहुड़ नामक अभिनन्द पुस्तिका का विमोचन
उदयपुर। विद्याभूषण लोकमंल न्यास नई दिल्ली एवं श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्ली के तत्वावधान में रविवार को सुखाड़िया विश्वविद्यालय के अतिथि गृह में प्राकृत विद्यामनीषी राष्ट्रपति सम्मान से विभूषित प्रो. डॉ. प्रेम सुमन जैन डि-लिट् को प्राकृत विद्या महोदधि एवं आचार्य विद्यानन्द मुनिराज प्राकृत वांग्मय पुरस्कार से सुशोभित किया गया। समारोह में अक्खर पाहुड़ नामक अभिनन्द पुस्तिका का भी विमोचन किया गया।
मुख्य अतिथि राज्य के गृहमंत्री गुलाबचन्द कटारिया, सुखाड़िया विवि के वाइस चांसलर प्रो. जेपी शर्मा, बैंगलुरू से आये प्रो. हम्पा नागराज अय्यपा, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. देव कोठारी, एमजे इन्द्र कुमार जैन, प्रो. जितेन्द्र कुमार जैन, प्रो. बीएस सन्नेह तथा उदयपुर नगर निगम के महापौर चन्द्रसिंह कोठारी थे।
कटारिया ने कहा कि ऐसे श्रेष्ठ गुरू और श्रेष्ठ विद्वान का सानिध्य मिल जाना ही बड़ी बात है। उससे भी बड़ा सौभाग्य यह है कि उनके अभिनन्दन और सम्मान समारोह का अहम हिस्सा बनना। कटारिया ने कहा कि डॉ. सुमन ने शिक्षा जगत से जितना लिया उससे कई गुना ज्यादा मां सरस्वती के चरणों में फिर से अर्पित कर दिया है। आपके सानिध्य में कई विद्यार्थियों ने अपना भविष्य संवारा है। डॉ.सुमन नई पीढ़ी के लिए हमेशा प्रेरणा पाथये बने रहेंगे।
समारोह का प्रारम्भ मां सरस्वती की तस्वीर के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण के साथ हुआ एवं मंगल गीत की प्रस्तुति हुई। मंच पर बैठे अतिथियों का आयोजकों की ओर से अभिनन्दन किया गया।
स्वागत उद्बोघन देते हुए डॅा.देव कोठारी ने डॉ.प्रेम सुमन जैन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि आज देश ही नहीं विदेश में भी प्राकृतिक भाषा की जो पताका फहरा रही है उसका श्रेय डॉ.सुमन को जाता है। डॅा. जैन ने जीवन में कई कठिन और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कड़ी मेहनत और लगन से अपने लक्ष्य को हासिल करने में कामयाबी पाई।
प्रोफेसर जय कुमार ने डॉ.सुमन के जीवन से जुड़े कई रोचक किस्से एवं संस्मरण सुनाते हुए उनकी विनम्रता की सराहना की। उन्होंने कहा कि आज दिल्ली से लेकर उदयपुर तक डॉ.सुमन के ज्ञान की गंगा गह रही है तथा इनकी सफलता की पताकाएं फहरा रही है।
प्रोफेसर सुषमा सिंघवी ने प्राकृत साहित्य के बारे में व्याख्यान देते हुए कहा कि प्राकृतिक साहित्य भी एक तरह का अध्यात्म ही है। यह पुरूषार्थ पूर्वक कर्म का क्षय करने की विधि बताता है। प्राकृतिक भाषा की विविधता से ही नवीन अर्थ निकलते हैं। उन्होंने कहा कि ज्ञान से ध्यान की सिद्धि होती है और ध्यान से सब कर्मों का क्षय होता है। कर्मों के क्षय का फल शाश्वत सुख है। इसलिए ज्ञान का अभ्यास जरूरी है। इसके प्रभाव से व्यक्ति जन्मान्तरों तक निर्मलता को प्राप्त करता है।
डॉ. सुमन के बारे : प्राकृत विद्या मनीषी, राष्ट्रपति अलंकरण से पुरस्कृत, विद्यावाचस्पति उपाधि से सम्मानित, विश्व विश्रुत विद्वान, सारस्व्त लोक में लब्ध प्रतिष्ठित, आजीवन अहर्निश प्राकृत वांगमय के अध्ययन अध्यापन, शोध अनुसन्धान, लेखन सम्पादन के क्षेत्र में अतूलनीय योगदान।
प्रोफेसर सुमन जैन को 75वें अमृत वर्ष महोत्सव के पावन प्रसंग पर वर्ष 2017 का आचार्य विद्यानन्द मुनिराज प्राकृतिक वांगमय पुरस्कार एवं प्राकृतिक विद्या महोदधि सम्मानोपाधि से रविवार 30 जुलाई को अलंकृत किया गया। डॉ.सुमन को आगमों में निहित गूढ़ रहस्यों को सरलता से जन सामान्य तक पहुंचाने की भी अपूर्व क्षमता है।प्राकृत आपने मोहनलाल सुखाड़िया विवि उदयपुर के संस्कृत, जैन विद्या प्राकृत विभाग में मेधावी शिक्षक, ओजस्वी वक्ता, कुशल प्रशासक के रूप में तीन दशक तक सेवाएं दी है। इस अवसर पर डॉ. प्रेम सुमन जैन का शहर की विभिन्न सामाजिक एंव शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा भी सम्मान किया गया। संचालन डॉ.जिनेन्द्र जैन ने किया। संयोजनकर्ता डॉ. सुभाष कोठारी थे।