उदयपुर। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से 21 दिसम्बर से आयोजित ‘‘शिल्पग्राम उत्सव’’ के लिये शिल्पग्राम की सजावट पर विशेष ध्यान दिया गया है। शिल्पग्राम परिसर के आंगन, चौपाल तथा झोंपडि़यों की दीवारो का मांडणो से सजाया जा रहा है तथा विभिन्न बाजारों की सज्जा का काम जारी है।
केन्द्र निदेशक फुरकान ख़ान ने बताया कि शिल्पग्राम उत्सव की देश में अपनी एक अलग विशेष पहचान है। यहां के नैसर्गिक वातावरण के साथ-साथ इसकी साज सज्जा को ग्रामीण परिवेश के अनुरूप बनाये जाने का प्रयास किया जाता है ताकि इसमें आने वाले लोग एक गांव के जन जीवन की अनुभूति कर सकें। उत्सव के लिये शिल्पग्राम की ढोल झोंपड़ी के कंगूरे को रंग बिरंगे पैटर्नस से सजाया गया है तो गुजरात की बन्नी झोंपड़ी को वहीं के शिल्पकारों ने माण्डणो से अभिमंडित किया है।
उन्होंने बताया कि हाड़ौती की सहरिया जन जाति के कलाकारों के माण्डणे काफी लोकप्रिय हैं तथा सहरिया कलाकार अपने परिवार के साथ शिल्पग्राम में ही रह कर अपनी झोंपड़ी को उत्सव के लिये सजा रहे हैं। गुजरात के राठवा आदिवासियों की झोपड़ी की विशेषता उसकी दीवारें हैं जिस पर राठवा कलाकार ने रंगों से पिथौरा चित्रकारी बनाई है तथा झोंपड़ी दीवार बरबस ध्यान आकर्षित करती है। इस भित्ती अलंकरण में राठवा जनजाति के लोक जीवन को प्रदर्शित किया गया है तथा साथ ही उनमें प्शु-पक्ष्यिों की आकृतियाँ भी मंडित की गई हैं। महाराष्ट्र की वारली चित्रकारी शिल्पग्राम में आगंतुकों के लिये आकर्षण होगी। सामान्यतया चावल के पेस्ट से बनाई जाने वाले इस चित्रकारी में महाराष्ट्र की जनजातियों के उत्सवों के दृश्य देखने को मिलते हैं।
उत्सव में इस बार विशेषतौर पर मेवाड़ अंचल की ‘गवरी’ को प्रतिकृतियों के माध्यम से एक नये अंदाज में दर्शाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिये पश्चिम बंगाल से मूर्ति कलाकारों को विशेष तौर पर बुलाया गया है जो मृदा तथा अन्य एलिमेन्ट के मिश्रण से गवरी के विभिन्न पात्रों की आदमकद प्रतिकृति बना रहे हैं।