उदयपुर। गणिनी आर्यिका सौभाग्यमति माताजी ने कहा कि संत भोजन का नहीं भजन एवं श्रद्धा भक्ति का भूखा होता है। साधनो का अंत संस्कारों को जन्म देता है। श्रद्धा,भक्ति, और समर्पण भगवान की भक्ति में रंग भर देता है।
वे आज हिरणमगरी से. 5 स्थित चन्द्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर मंे आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रही थी। उन्होेंने कहा कि दिगंबर संत के लिये सैकड़ो जैन परिवार चैका लगाकर घर पर भोजन कराने का प्रयास करते है लेकिन जिसके अन्न में पुण्य की ताकत होती है ,वहीं साधु खड़ा हो कर आहार स्वीकार कर लेता है।
उन्होंने कहा कि अनादिकाल के संस्कार से जुड़ा से जुड़ा जीव संसार में आते ही साधनों को जुटानें का प्रयत्न करता है। सोचने वाली बात है कि मुनष्य पर्याय के पुण्य प्रभाव से धन सम्पत्ति,सारी सुख सुविधायें मिल जाती है। उन्होेंने कहा कि दुनिया में करोड़ों लोग धन कमाकर सुख-सुविधायें जुटा लेते है लेकिन धार्मिक कार्यो में धन समर्पित करने से रह जाते है।