प्रसिद्ध शायर मिर्जा गालिब पर सेमीनार शुरू
उदयपुर। गालिब इंस्टीट्यूट नई दिल्ली, मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर भारत सरकार एवं अदबी संगम उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में गालिब का तसव्वर रे निशा तो गम विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार सरदारपुरा स्थित कुंभा भवन में प्रारम्भ हुई।
इंस्टीट्यूट के निदेशक रज़ा हैदर ने बताया कि गालिब और उनकी शेरो-शायरियों को घर-घर पहुंचाने एवं आज के युवाओं को उनके व्यक्तित्व व कृतित्व से रूबरू करवाने के उद्देश्य से यह इंस्टीट्यूट देश के विभिन्न शहरों में ऐसे आयोजन करता है। उसी कड़ी में उदयपुर में भी आज से यह दो दिवसीय सेमीनार प्रारम्भ हुई है। मौजूद वक्त मे गालिब को समझना बेहद जरूरी है। इसलिये कि गालिब हमारी सांझी विरासत व मिली-जुली तहज़ीब का सबसे बड़ा सिम्बल है।
डॉ गिरिजा व्यास ने कहा कि मिर्जा गालिब जैसी शख्सियत की पहचान सिर्फ एक शख्सियत के तौर पर ही नहीं की जा सकती है। गालिब खुशी है तो गालिब गम भी है, गालिब दिन है तो गालिब रात भी है, गालिब सुख भी है तांे गालिब दुख भी है। मिर्जा गालिब किसी एक कौम के नहीं गालिब इंसानियत के शायर थे। गालिब के शायरियों को न तो किसी सीमा में बांधा जा सकता है ओर ना ही किसी मजहब के दायरे में रखा जा सकता है। गालिब तो हर एक व्यक्ति के मन की आवाज थे। मैं गालिब की रचनाओं को सिहराने रखकर सोती हूं और ऐसे लगता है कि पढ़ते-पढ़ते किसी और दुनिया मंे पंहुच जाती हूं।
मुख्य वक्ता प्रो. ए.ए.फातमी ने गालिब पर अपनी बात की शुरूआत इस शेर से की- मुश्किलें इतनी पड़ी मुझ पर कि आसां हो गई। उन्होंने कहा कि गालिब ने शायरी को दिल के बजाए दिमाग दिया। गालिब ही एक मात्र ऐसे शायर थे जिन्होंने हयात और कायनात पर भी सवाल खड़े किये। गालिब तो इंसायित के शायर थे। गालिब की शायरियंा मकसदी हैं और तुजुर्बा लिये है। गालिब की शायरियां न आसमानी है न किताबी है गालिब की शायरियां हालाती हैं। उन्होंने गालिब का एक किस्सा बयां करते हुए बताया कि गालिब ने दिल्ली की बर्बादी अपनी आंखों से देखी और उसकी बर्बादी को बडे़ ही खूबसूरती से अपनी शायरियों में बयां किया। एक बार जब वो अपने पेंशन का मुकदमा लड़ने दिल्ली से कलकत्ता गये। उस जमाने में इतने साधन नहीं थे। उन्होंने कई किलोमीटर की पैदल यात्रा भी और कलकत्ता पहुंचे। हालांकि वह कलकत्ता में पेंशन का मुकदमा तो हार गये लेकिन कलकत्ता वालों का दिल जीत लिया।
देश में अंग्रेजों के दौर के दौरान जब हर चीज बाजार में बिकने आ गई तब गालिब ने अपनी शायरियों में बाजार को शामिल करते हुए लिखा कि बाजार में सब कुछ बिक रहा है कल दिलो जान भी बिक जाएंगे।
डॉ. गिरिजा व्यास की पुस्तक का विमोचन : समारोह में पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ गिरिजा व्यास की पुस्तक रंगे एहसास का विमोचन भी हुआ। डॉ. गिरिजा ने कहा कि पुस्तक में एक सफा उर्दू में है तो साथ ही एक सफा हिन्दी में लिखा गया है ताकि हिन्दी-उर्दू साथ-साथ चल सके। उन्होंने 18 वर्ष पूर्व इस पुस्तक की पाण्डुलिपि तैयार की थी लेकिन किसी कारणवश उनकी पाण्डुलिपि खो गई थी। लेकिन अथक प्रयासों के बाद वह फिर से हासिल हो पाई और आज वह प्रकाशित हो पाई।
उद्योगपति जेके तायलिया ने कहा कि गालिब के शेर को पड़ना आज हम अपने लिये इज्जत समझते है। गालिब को हम जवानी में यह नहीं जानते कि वे किस मजहब के है,बस हम इतना जानते थे कि वे शायर थे और एक ऐसे शायर थे जो हमारें लिए के करीब रहते थे। इस अवसर पर रियाज तहसीन ने कहा कि गालिब इस मुल्क के ऐसे शायर थे जिनका सममान हर मजहब के लोग करते है। जैसे-जैसे वक्त गुजर रहा है,गालिब की प्रसिद्धि में प्रतिदिन वृृद्धि हो रही है। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार डाॅ. सरवत खान ने ज्ञापित किया। समारोह में शहर के अनेक उद्योगपति, शिक्षाविद एवं गणमान्य नागरिक मौजूद थे।
सायंकालीन सत्र में आयोजित गज़ल संध्या में डा. प्रेम भण्डारी ने गालिब की लिखी गज़ल य न थी हमारी किसमत के विसाले यार होता…, बस के दुश्वार है हर काम का आसंा होना.. डाॅ. देवेन्द्रसिंह हिरण ने दिली ही तो है न संगोखिष्ट, दर्द से भर न आयें क्यूं… सहित अनेक गज़लों की प्रस्तुति दे कर समां बांध दिया।