उदयपुर। किसी भी विकसित और स्वस्थ समाज की परिकल्पना स्वस्थ और समृद्ध बाल विकास के बिना अधूरी और असंभव है ऐसे में नवजातों के पूर्णरूपेण स्वस्थ होने के लिए उनके जन्म से पहले किए गए तमाम शुरूआती कदम खासे महत्वपूर्ण साबित होते हैं।
हाल ही में पेसिफिक मेडीकल कालेज एवं हास्पीटल के बाल एवं शिशु रोग विषेषज्ञ डाॅ.रवि भाटिया और डा. दिनेश रजवानिया नें 1824 नवजात षिषुयों पर किए गए शोघ के आधार पर यह तथ्य सामने आया है कि यदि बच्चों में जन्म के समय थाइराइड हार्मोन का ध्यान रखा जाए तो बच्चों का मानसिक एवं शारीरिक विकास सुगठित और पूर्ण रुप से स्वस्थ होगा।
यह रिचर्स पेपर इण्डियन जर्नल ऑफ एंडोक्राइनोलॉजी -मेटाबोलिज्म में प्रकाषित हुआ है। डा. रवि भाटिया ने बताया कि यह शोध कार्य विभागाध्यक्ष डाॅ.ए.पी.गुप्ता के मार्गदर्षन में किया गया। इस शोध में पीएमसीएच में षिषु के पैदा होने के समय षिषु की नाल से थाइराॅइड हार्मोन (टीएसएच) की जाॅच की जाती है अगर टीएसएच की बैल्यू 20एमएल/आईयू पर एमएल से ज्यादा होती है तो 7 दिन बाद नवजात षिषु की थाइराॅइड की जाॅच की जाती है। अक्टूबर 2013 से शुरू किए गए इस रिसर्च प्रोजेक्ट में 1824 नवजात बच्चें जिनका वजन ढाई किलों से ज्यादा है के टीएसएच की जाॅच की गई जिसमे यह पाया कि एक षिषु को कन्जेनाइटल हाइपोथाइरोजियम निकला। बच्चों में थायराइड की कमी को हाइपोथाइरोजियम कहते है। हाइपोथाइरोजियम से बच्चों के दिमागी विकास पर असर पडता है। दरअसल पूरें विश्वे में शिशु के पैदा होते ही थायराइड हार्मोन की जांच की जाती है। लेकिन भारत में राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा कोई स्क्रीनिंग कार्यक्रम नहीं है। जिसमें की बच्चों के पैदा होतें ही थायराइड हार्मोन की जांच की जाए।