उदयपुर। उदयपुर नगर निगम प्रांगण में चली 16 दिवसीय खादी एवं ग्रामोद्योग मेले का रविवार 22 दिसंबर को समापन हुआ।
मेला संबंधी जानकारी देते हुए संयोजक गुलाबसिंह गरासिया ने बताया कि इस बार मेले में पिछली बार के मुकाबले लगभग डेढ़ गुना बिक्री हुई,जो खादी के उज्ज्वल भविष्य की ओर ईशारा करती है। उन्होंने बताया कि खादी की 1 करोड़ 1 लाख 47000 की जबकि ग्रामोद्योग की 1 करोड 21 लाख 55 हजार यानि कुल बिक्री 2 करोड़ 23 लाख 2 हजार की हुई जबकि गत वर्ष यह आंकड़ा पौने दो करोड़़ के आस-पास था। उन्होंने कहा कि इस बार खादी पर राजस्थान सरकार द्वारा 50 प्रतिशत की छूट का लाभ सीधा उपभोक्ताओं को मिला। इसी कारण इसकी अच्छी बिक्री हुई। इसके अलावा मेले में इस बार ढाई हजार की खरीद पर एक गिफ्ट हैंपर स्कीम भी रखी गई थी। इसके चलते भी बिक्री में काफी बढ़ोतरी हुई।
खादी ग्रामोद्योग के पूर्व उप निदेशक प्रकाश चंद्र गौड़ ने बताया कि इस बार मेले में खादी ग्राम उद्योग व हस्तशिल्प को शामिल किया गया। 113 स्टाले मेले में लगाई गई। इतनी बड़ी मात्रा में बिक्री होना इस बात को दर्शाता है कि लोगों का विश्वास खादी के प्रति बढा है और लोग इसे बहुत पसंद कर रहे हैं। इस दौरान दिलीप जैन,पप्पू खंडेलवाल और शंकर लाल भी उपस्थित थे। मेले के दौरान 46 खादी और ग्रामोद्योग इकाईयों को की सभी संस्थाओं को सम्मानित कर प्रमाण पत्र दिया गया इसी तरह 28 वित्त पोषित ग्राम उद्योग इकाइयों को भी सम्मानित कर प्रमाण पत्र दिए गए।
खादी की जींस ने युवाओं के दिलों में बनायी जगह- खादी मेले में इस बार दौसा की खादी जींस और जैविक खादी ने भी बिक्री के रिकॉर्ड तोड़ दिए। दौसा से आए प्रसून पाल ने बताया कि जैविक खादी दौसा में ही बनती। है इसका आलम यह है कि यह बाजार में आने से पहले ही वह बुक हो जाती है। भारत में तो इसका मार्केट है ही इसे विदेशों में भी खूब पसंद किया जाता है, ज्यादातर यह जापान अमेरिका जैसे देशों में भेजी जाती है।
प्रसन्नपाल ने बताया कि जैविक खादी रूई से बनी होती है। यह बिना रसायन से बनाई जाती हैं। इससे चमड़ी को कोई नुकसान नहीं होता है। आमतौर पर बाजार में चलने वाली जींस पहनने से चर्म रोग होने की शिकायत मिलती है लेकिन जैविक खादी से चमड़ी की पूरी सुरक्षा होती है। यह जैविक खादी अपने मनपसंद रंगों में बनाई जा सकती है। उन्होंने बताया कि इस जैविक खादी से कुर्ता पायजामा पहनने वालों की तादाद काफी बढ़ गई है। उदयपुर में भी इसकी डिमांड काफी रही। आम तौर पर यह बाजार में चलने वाली जींस से सस्ती भी पड़ती है।