रामकथा में उमड़ी श्रद्धालुओं की भक्ति
उदयपुर। अम्बापोल स्थित पुष्पवाटिका में चल रही भव्य रामकथा के दूसरे दिन रामभक्तों की खूब श्रद्धा उमड़ी। पहले दिन के वनिस्पत दूसरे दिन रामभक्तों की संख्या दुगुनी हो गई। धार्मिक सत्संग समिति के अध्यक्ष अनिल शर्मा एवं सचिव कमलेश पारीख ने बताया कि कथा में शिव-पार्वती एवं सती प्रसंगों पर श्रद्धालु भाव विभोर को गये। साध्वी कथावाचक विश्वेश्वरी देवी के मुखारबिन्द से रामकथा का ऐसा संगीतमयी और सुरीला रसास्वदन कर श्रद्धालुओं ने प्रभु श्री राम के जयकारों से पाण्डाल गूंजा दिया। कथा के दौरान भजनों पर कथा प्रारम्भ से लेकर अन्त तक श्रद्धालु भक्ति में डूब कर झूमते रहे।
राम कथा के दूसरे दिन साध्वी विश्वेश्वरी देवी ने शिव सती प्रसंग के माध्यम से सतसंग की महिमा का अद्भुत वर्णन किया गया। उन्होंने कहा कि देवी सती ने भगवान की कथा के प्रति अनादर भाव रखा, परिणामतः सती को देह का त्याग करना पड़ा। इस बात को साध्वीजी ने रामभक्तों को सरल शब्दों में समझाते हुए कहा कि जीवन में कभी-भी शास्त्रों एवं संतों के प्रति अश्रद्धा एवं अनादर का भाव नहीं रखना चाहिए। क्योंकि संत ही शास्त्रों के माध्यम से सत्यनारायण भगवान का दर्शन करा सकते हैं।
कथा प्रसंग के तहत साध्वीजी ने बताया कि शंकरजी के द्वारा श्री राम की परीक्षा लेने पर अत्यन्त कष्ट हुआ, किन्तु कष्ट में भी उन्होंने भगवान पर पूर्ण विश्वास रखा। जो लोग अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में भगवान को ही स्मरण करते हैं तथा उन्हीं पर भरोसा रखते हैं, वे मुश्किल से मुश्किल समय को भी आसानी से पार कर लेते हैं। जब किसी समस्या का समाधान कहीं से भी न मिले तब सच्ची श्रद्धा से अपने इष्ट का ध्यान करने से सभी समस्याओं का हल प्राप्त हो जाता है।
उन्होंने बतायाकि दक्ष यज्ञ में सती जी का अनादर हुआ, क्योंकि सती जी प्रथम बार शिव के बिना अकेली पहुंची थीं। शिव विश्वास हैं और सती श्रद्धा हैं। श्रद्धा की सुन्दरता सदैव विश्वास के साथ ही होती है। बिना विश्वास के श्रद्धा मार्ग से भटक जाती है और ऐसी श्रद्धा का अन्त सती के समान होता है।
साध्वीजी ने कहा कि सती ही पार्वती के रूप में जन्म-धारण करके आती है। यह श्रद्धा का नवीनीकरण है। उन्होंने कहा कि संकेत यह है कि सात्विक श्रद्धा का कभी पूर्णतरू अन्त नहीं होता अपितु राजसी एवं तापसी श्रद्धा उसे आच्छादित कर देती है। जब उपयुक्त समय आता है तब सात्विक श्रद्धा पुनरू नया जीवन प्राप्त कर लेती है और पार्वती जी की तरह साधना में लग जाती है। पार्वती जी ने शिव जी की आराधना करते हुए एक सच्चे साधक का दर्शन कराया है। सच्चंे साधक को माला, मंत्र, गुरू एवं इष्ट का कभी त्याग नहीं करना चाहिए। शनिवार को मनाया जायेगा रामजन्मोत्सव- मीडिया प्रभारी नीरज सनाढ्य ने बताया कि शनिवार को रमाकथा में रामजन्मोत्सव मनाया जायेगा। जिसके तहत भगवान राम की झांकी सजायी जायेगी।