उदयपुर। विज्ञान के रौब और आतंक के बीच हमें मनुष्यता की स्थापना करने के लिए मानविकी के अध्ययन को बढ़ावा देना होगा। मानविकी का अध्ययन नहीं होगा तो जिज्ञासा भी नहीं रहेगी और जिज्ञासा नहीं रही तो विज्ञान का अध्ययन ही नहीं हो सकेगा। ये विचार संस्कृति चितंक और संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य प्रो. पुरूषोतम अग्रवाल ने व्यक्त किए।
वे ने मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वाविद्यालय के हिन्दी विभाग में आयोजित ’मानविकी के बिना मानवता की कल्पना’ विषयक व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने ’मानविकी के बिना मानवता की कल्पना’ विषयक स्थापना को विविध दृष्टिकोणों से पुष्टव किया। उन्हों ने सीधे शब्दों में मानविकी के अध्ययन को विज्ञान के समक्ष महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने स्पष्टो किया कि यद्यपि विज्ञान के अध्ययन से रोजगार के अवसर अधिक उपलब्ध हो जाते हैं, लेकिन मानविकी के बिना हम अधिक सहिष्णुर, अधिक मानवीय और अधिक जिज्ञासापूर्ण समाज का निर्माण नहीं कर सकते। मानवतापूर्ण समाज के लिए मानविकी का अध्ययन अत्यावश्यक है।
प्रो. अग्रवाल ने देश में विज्ञान संबधी शोध कार्यों और सामाजिक एवं मानविकी के शोध कार्यों को आबंटित बजट की तुलना करते हुए बताया कि विज्ञान की तुलना में मानविकी शोध का बजट बहुत कम है। विज्ञान के लिए जहां 11 प्रतिशत राशि आवंटित की गई है, वहीं मानविकी के लिए यह केवल 2 प्रतिशत ही है। उन्होंने काव्य और उसके विषय की व्यापकता को भामह के श्लोवक से स्थापित किया और कहा कि ऐसा कोई शब्द नहीं और ऐसा कोई ज्ञान नहीं जहां तक काव्य का विस्तार नहीं हो।
प्रो. अग्रवाल ने जोर देकर कहा कि साम्राज्यवादी शासन के दौरान योजना पूर्वक भारत का इतिहास नष्ट् किया गया है अत: उसे पुनर्जीवित करने का कार्य मानविकी के अध्ययन से ही सम्भव है। उन्होंने राजस्थान के इतिहास और संस्कृति के संरक्षण के लिए मुनि जिनविजय के कार्यों की प्रशंसा कर उन्हें अद्वितीय बताया। प्रो. अग्रवाल ने राजस्थान के इतिहास में पन्नाधाय का उदाहरण देते हुए बताया कि राष्ट्रन के लिए बलिदान की भावना केवल मानविकी के अध्ययन से ही उत्पन्न की जा सकती है। उन्होंने बलपूर्वक कहा कि एक संवेदनशील एवं निष्ठा वान लेखक एक निष्ठाेवान वैज्ञानिक से अधिक क्रान्तिकारी हो सकता है।
अतिथि वक्ता कहानीकार डॉ. हेतु भारद्वाज ने परम्परा से ही मनुष्यि समाज में साहित्य और संवेदना के व्यापक अस्तित्व को उदाहरण सहित समझाया। उन्होंने सुदामा चरित के माध्यम से कृष्णव—सुदामा की मित्रता में सद्भाव, सह अस्तित्व और सहिष्णुयता के मानविकी गुणों की और संकेत किया। इसी प्रकार उन्होंने रामकथा के प्रसिद्ध पात्र कैकयी के माध्यम से हृदय परिवर्तन का पक्ष उजागर किया। इससे पहले हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. माधव हाड़ा ने अतिथियों का स्वागत किया और संक्षेप में व्याख्यान के विषय का प्रवर्तन किया। सहायक आचार्य डॉ. नवीन कुमार नन्दवाना ने धन्यवाद् ज्ञापित किया। संचालन विभाग की सहायक आचार्य डॉ. नीतू परिहार ने किया।