आहाड़ संग्रहालय
उदयपुर। उदयपुर के पास आहाड नदी के उत्तर-पूर्व में प्राचीन धूल टीले की खुदाई में मिले हडप्पाकालीन सभ्यता के समकक्ष करीब 4 हजार वर्ष पूर्व सभ्यता के अवशेषों का अनूठा खजाना लिये है आहाड संग्रहालय।
यहां लाल-काले मिट्टी के पात्रों के अवशेष, चमकीले लाल रंग के पात्र, ताम्र पाषाणयुगीन अवशेषों के चिह्न, चमकीले लाल रंग के पात्र, विभिन्न आकृति के घडे, टोटीदार लोटे, हाण्डी, तश्तरी, मिट्टी के मनके, पत्थरों को हथियारों के रूप में उपयोग में लाये जाने वाले कुल्हाडी, छुरी, चाकू, धूपदान, जलधारी, विभिन्न प्रकार के जानवरों की मिट्टी की आकृतियां, बैलगाडी, पहिये, गेंदें, हड्डियों की सुइयां, दीपक, ठप्पे आदि का ऐतिहासिक संग्रह किया गया है।
संग्रहालय के एक कक्ष के मध्य 4 फुट ऊंचा व 9 इंच गोलाई का प्रथम सदी का एक बडा संग्रह पात्र तथा जैन तीर्थंकर की ताम्र प्रतिमा तथा विष्णु नागनाथ के साथ-साथ दसवीं से ग्यारहवीं शताब्दी की सूर्य, चामुण्डा, सुर सुन्दरी, शिव-पार्वती, गरुड़सवार विष्णु एवं इनके कच्छपावतार, मत्स्य अवतार एवं त्रिमुख विष्णु, गणेश, दुर्गा, एवं नाग-नागिन की प्रतिमाएं प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है। संग्रहालय में प्रदर्शित नारी प्रतिमाएं विभिन्न भाव भंगिमाओं में है जिनमें तत्कालीन आभूषण एवं श्रृंगारप्रियता की झलक मिलती है।
टीले की खुदाई में मिले मकानों की दीवारों तथा गंदे पानी को निकालने के लिए रिंगवेल के अवशेष से पता चलता है कि यहां हडप्पा एवं मोहनजोदडो के समकक्ष नगर व्यवस्था रही होगी। रिंगवेल एक वैज्ञानिक पद्घति का प्रतीक है जिसमें 15 – 20 फीट के गड्ढे खोदकर पकाई गई मिट्टी के घेरे(रिंग) एक दूसरे के ऊपर रखकर रिंगवेल बनाया जाता था जिसमें गंदा पानी गिरता था। इसका एक नमूना पुरास्थल पर संरक्षित किया गया है।
आहाड सभ्यता के इस टीले पर प्रथमबार सीमित क्षेत्र 1955-56 में राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई की गई। इसके उपरान्त 1961-62 में पुरातत्व विभाग से सम्बद्घ पुना एवं मेलबोर्न विश्वविद्यालय, आस्टे्रलिया के संयुक्त दल द्वारा टीले की खुदाई का कार्य किया गया। इसी वर्ष खुदाई में प्राप्त सामग्री से साईट पर ही आहाड संग्रहालय की स्थापना की गई। यह संग्रहालय पुरातत्व में रुचि रखने वालों के लिए अध्ययन एवं शोध की दृष्टि एक महत्वपूर्ण पुरातत्व संग्रहालय है।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल