श्रीराम चरितमानस के सातवें दिन कहा बाल सन्त प्रियांशु महाराज ने
udaipur. महाकालेश्वर मन्दिर प्रांगण में श्री दक्षिण मुखि मंशापूर्ण हनुमान मन्दिर प्रांगण में आयोजित श्रीराम कथा के सातवें दिन नौ वर्षीय बाल सन्त श्री प्रियांशु महाराज ने कहा कि आज हमारे नेता सत्ता के लिए कितना लड़ते- झगड़ते हैं। धन बल और बाहूबल सत्ता पाने के दो जबर्दस्त हथियार बन चुके हैं। आज पूरी दुनिया में सत्ता नाम का संघर्ष छिड़ा हुआ है। अगर हम रामचरित मानस सुनकर प्रभु श्री राम के भ्राता भरतजी के प्रसंग से प्रेरणा लें तो सत्ता के लिए संघर्ष तो दूर की बात है, सत्ता मोह से ही हमें छुटकारा मिल सकता है।
उन्होंने महाराज भरत के त्याग और तपस्या के बारे में बताते हुए कहा कि भरतजी ने अयोध्या के सत्ता सुख को त्याग कर प्रभु चरणों में ही अपना मन लगाया। त्याग और तपस्या की अगर कोई प्रतिमूर्ति हैं तो वह है श्री भरतजी महाराज। श्री भरतजी महाराज सत्ता का सुख भोग कर नहीं बल्कि सत्ता को त्याग कर ही महान बने थे। बाल सन्त ने कहा कि मन से संसार का त्याग करना बड़ा ही कठिन हैं। उन्होंने कहा कि हर जगह गुस्सा करना ठीक नहीं है। श्रीराम के युग में भी गुस्सा करने वाले लोग हुआ करते थे, लेकिन वो आज के समय की तरह सडक़ों पर, बसों में, ट्रेनों में और मन्दिरों में नहीं लड़ा करते थे, बल्कि उस समय एक कोप भवन हुआ करता था। जिसे गुस्सा आता था वह उस भवन में चला जाता था। हमें हर जगह गुस्सा करने से बचना चाहिये। हर समस्या का समाधान गुस्सा नहीं होता। बाल सन्त ने आम जन से अपील की कि वह निर्मल बने, पवित्र बने, अहंकार रहित बने, निर्लोभी बने, निष्ंकलंकी जीवन जीये और यही श्रीराम चरित्र मानस का सार है।
कथा के सातवें दिन विशिष्ठ अतिथि के रूप में नगर परिषद की सभापति श्रीमती रजनी डांगी, शहर भाजपा जिलाध्यक्ष दिनेश भट्ट उपस्थित हुए जिन्होंने बाल सन्त का आशर्वाद लिया। इस अवसर पर उनका स्वागत अभिनन्दन मण्डल के दुर्गेश शर्मा, प्रवीण शर्मा, सुधा द्विवेदी, राकेश आमेटा तथा बंशीलाल आमेटा आदि ने माला, शाल तथा स्मृति चिन्ह प्रदान कर किया।
व्यासपीठ की पूजा महन्त दयारामजी महाराज धोलीबावड़ी, महंत गीतानन्दजी महाराज शोभागपुरा, सन्त रामचन्द्रदासजी, महन्त रामेश्वरनाथजी महाकालेश्वर मन्दिर, महन्त भरतदासजी मुल्लातलाई, सन्त आनन्दगिरीजी महाराज हाथीपोल तथा मुख्य अतिथि राजाराम शर्मा, नीरज सक्सेना तथा सुरेश शर्मा ने की।