फैल रही है दूसरी जलीय घासें
उदयपुर। झीलों की इस नगरी में झीलों में सुरसा की तरह मुंह फैलाने वाली जलकुंभी से निजात पाने के लिए कुछ समय पूर्व किए गए उपाय से जलकुंभी से तो निजात मिल गई लेकिन अब दूसरी समस्या खड़ी होने लगी है। जलकुंभी तो नियंत्रण में है लेकिन अब घडि़याल घास, वेलिसनेरिया, आइपोनियाई आदि ने पांव पसारने शुरू कर दिए हैं।
यह जानकारी झील हितैषियों और पर्यावरणविदों ने झीलों का दौरा करने के बाद दी। दल ने बताया कि चांदपोल दरवाजे के पास सीवरेज का पानी झील में जा रहा है। यहीं एक गेस्टर हाउस का गंदा पानी भी सीधा झील में जा रहा है। दल ने कुम्हाकरिया तालाब में फैली खरपतवार का निरीक्षण करने के बाद पाया कि जलकुंभी को नियंत्रित करने के लिए डाले गए कीट नियोचेरिना अपना काम बखूबी कर रहे हैं।
दल ने मांग की कि प्रशासन जलीय घास को तुरंत हटवाने की व्य वस्थार कराने के साथ कीटों द्वारा सुखाई जा रही जलकुंभी को वैज्ञानिक तरीके से हटवाए। दल के विशेषज्ञों ने कहा कि जब तक झीलों में गंदगी गिरती रहेगी, इस प्रकार की खरपतवार झील में पनपती रहेगी। झील के एक हिस्से में जलकुंभी की एक बगीची (हेचरी) भी बनवाई जाए ताकि जलकुंभी का विस्तार प्राकृतिक तरीके से नियंत्रित होता रहे।
दल में डॉ. तेज राजदान, अनिल मेहता, नंदकिशोर शर्मा, हाजी सरदार मोहम्माद, विक्रमादित्येसिंह चौहान, इरफान अली सहित कई अन्य मौजूद थे।