कैंसर के रोगियों का सफल ऑपरेशन
उदयपुर। अब कैंसर के रोगियों को उदयपुर छोड़कर कहीं जाने की जरूरत नहीं। इसका इलाज उदयपुर के गीतांजलि हॉस्पिटल में भी उपलब्ध है। गत दिनों में यहां किए गए कई ऑपरेशनों में सफलता का रेशियो लगभग शत-प्रतिशत रहा है।
गीतांजलि हॉस्पिटल परिसर में पत्रकारों से बातचीत में निदेशक अंकित अग्रवाल ने बताया कि अग्न्याशय से कैंसर की गांठ निकालने का साढे़ सात घंटे तक चला जटिल ऑपरेशन, कंधे के कैंसर का ऑपरेशन, गले से कैंसर की गांठ आदि के भी यहां सफल ऑपरेशन किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि जनता में जागरूकता की जरूरत है। राजस्थान में कैंसर की कोई हिस्ट्री नहीं है। इसी प्रकार कैंसर रोग के लिए कोई गाइड लाइन नहीं है। अमूमन ब्रेस्ट, सर्विक्स (बच्चेदानी के मुंह) तथा प्रोस्टेट कैंसर के अधिकतर मामले सामने आते हैं। इन्हें भी रोका जा सकता है अगर समय पर स्क्रीनिंग कराई जाए तो।
कैंसर विशेषज्ञ डॉ. प्रशांत शर्मा ने बताया कि भीलवाड़ा के राजाजी का करेड़ा के रेह निवासी 55 वर्षीय मदनलाल पेट दर्द से काफी परेशान थे। विभिन्न अस्पतालों में इलाज कराने के बावजूद वे काफी परेशान थे। यहां आने पर उनका ऑपरेशन किया गया। अग्न्याशय से कैंसर की गांठ निकाली गई। इसके लिए किया गया ऑपरेशन करीब साढे़ सात घंटे तक चला।
उन्होंने बताया कि कैंसर के मरीज नहीं बचने का कारण सिर्फ और सिर्फ जागरूकता का अभाव है। पुरुषों में 40 वर्ष एवं महिलाओं में 21 वर्ष की आयु के बाद अमूमन वर्ष में एक बार स्क्रीनिंग (जांच) करवानी चाहिए ताकि अगर कैंसर हो तो पता चल जाए और समय पर उसका उपचार किया जा सके। अमूमन अंतिम स्टेज पर पहचान होती है और मरीज आता है तब तक उसका इलाज मुश्किल हो जाता है। कंधे से निकाली गई कैंसर की गांठ में अमूमन आदमी को अपाहिज होना पड़ता है लेकिन कंधे की हड्डी निकालकर हमने यहां प्रोलीन मैश लगाया। यह एक प्रकार का जुगाड़ है। यह स्टील का इंस्ट्रूमेंट अगर लगाया जाता तो करीब डेढ़ लाख का आता है जबकि इलाज सहित करीब 40 हजार में यह पूरा केस निपट गया।
प्रेस वार्ता में मौजूद गीतांजलि के वरिष्ठ प्लास्टिक सर्जन एवं बर्न विशेषज्ञ डॉ. आशुतोष सोनी ने बताया कि जिस प्रकार कैंसर रोग विशेषज्ञ का काम है खराब चीज को हटाना वहीं साथ ही हमारा काम है हटाई गई चीज की जगह पुनर्निर्माण करना। गुजरात में एक खेत में कार्य करते समय हुए विस्फोसट से एक किसान का चेहरा पूर्णत: विकृत हो चुका था। उसे यहां लाया गया। उसके चेहरे की काफी उत्तिकाएं नष्ट हो चुकी थीं। करीब छह घंटे चले ऑपरेशन के बाद उसके चेहरे को नया आकार दिया गया। ऑपरेशन के बाद बिगड़े हुए अंगों का हम निर्माण करते हैं। इसमें कोई प्लास्टिक नहीं लगाया जाता बल्कि मरीज के शरीर के ही अन्य हिस्सों से त्वचा निकालकर उक्त अंग का निर्माण किया जाता है। प्रेस वार्ता में प्राचार्य डॉ. प्रमिला बजाज भी मौजूद थीं।