सामाजिक संस्थाओं को रचनात्मक नाम राष्ट्रपिता ने दिया
udaipur. भारतीय समाज में रचनात्मक संस्थाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। स्वैच्छिक संस्थाओं को रचनात्मक संस्था नाम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दिया है। दान में अहंकार छुपा होता है स्वैच्छिकता समाज को नागरिक ऋण चुकाने की परंपरा का निर्वहन करती है।
ये विचार डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरिअल ट्रस्ट द्वारा विद्या भवन पोलिटेक्निक में आयोजित स्वैच्छिकता विषयक संवाद में प्रमुख गांधीवादी एवं विद्याभवन के अध्यक्ष रियाज तहसीन ने व्यक्त किये। तहसीन ने कहा कि सरकार के पास सत्ता की शक्ति होती है और निजी क्षेत्र के पास अर्थ की, जबकि स्वैच्छिक संस्थाओ के पास नैतिक बल और जन विश्वास होता है। स्वैच्छिक संस्थाओ को लगातार सामाजिक लाभ की तरफ देखना चाहिए।
गांधी मानव कल्याण सोसायटी के संचालक मदन नागदा ने कहा कि स्वैच्छिकता के बल पर सामाजिक बदलाव लाया जा सकता है। संस्थाओं को समाज के वंचित तबके पर खास ध्यान देने की जरुरत है। विद्या भवन शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के निदेशक प्रोफ़ेसर एम. पी. शर्मा ने कहा कि स्वैच्छिता की पृष्ठ भूमि में जब आप काम करते हैं तो सारा नजरिया ही बदल जाता है। स्वैच्छिकता का भाव आतंरिक एवं बाह्य परिवेश से पैदा होता है। पूर्व प्राचार्य जे. पी. श्रीमाली ने स्वैच्छिकता को समाज के हित में जरुरी बतलाया।
पॉलिटेक्निक के प्राचार्य अनिल मेहता ने कहा कि स्वैच्छिक प्रयास के बिना समाज विकास की कल्पना बेमानी सी लगती है। अर्थ प्रदान समाज में निज स्वार्थ से ऊपर उठाकर समाज के बारे में सोचने की महती जरुरत है.
स्वैच्छिकता विषयक फिल्म फिल्म का प्रदर्शन करते हुए ट्रस्ट सचिव नन्द किशोर शर्मा ने स्वैच्छिक प्रयासों की जरुरत बताते हुए सामंत वादी काल में डॉ. मोहन सिंह मेहता, सादिक अली, के एल बोर्दिया, जनार्दन राय नगर का भी जिक्र किया.
Let’s take a survey to assess that how many society’s are working on moral grounds and ethically…..