udaipur. यदि गृहस्थी के पास बिलकुल भी धन नहीं तो वह गृहस्थी नहीं कहलाता है और जिसके पास थोड़ा भी धन हो वह साधु नहीं कहलाता है। जिस प्रकार जल की बून्द विभिन्न संगति को पाकर विभिन्न पर्यायों को धारण करती है उसी प्रकार साधु की संगत भी सर्व दु:खों का नाश कर देती है।
साधु बनते ही पर्याय बदल जाते हैं और जग कल्याण के लिए ही साधु बना जाता है। उक्त उद्गार आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज ने सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में आयोजित प्रात:कालीन धर्मसभा में व्यक्त किये।
सुलोकनंदी का प्रथम आहार : क्षुल्लक साधु बनने के बाद सुलोकनन्दी का प्रथम आहार उनके ही परिवार के सदस्यों द्वारा लगाये गये चौके में हुआ। सभी ने आहार करवा कर क्षुल्लकजी को पिच्छिका अर्पण की। उल्लेखनीय है कि दीक्षा समारोह में बढ़-चढक़र बोलियां लगी और सभी बोलियां दीक्षार्थी के परिवार वालों ने ही ली।
कुम्भ राशि का अदभुत संयोग : यह भी संयोग है कि दीक्षार्थी के परिवार वालों का नाम भी कुंभ राशि पर, दीक्षा लेने के बाद भी कुंभ राशि, आसमान में चन्द्रमा भी कुम्भ राशि व दीक्षा देने वाले गुरू का नाम भी कुम्भ राशि व दीक्षा स्थल सेक्टर 11 भी कुम्भ राशि व दीक्षार्र्थी के धर्म माता-पिता भी कुम्भ राशि के हैं।