कई रूपों में मनती है मकर संक्रान्ति
नया साल आ गया है। इस नये साल का सबसे पहला पर्व है मकर संक्रान्ति। हमारे ज्योतिष विज्ञान में 12 राशियां मानी गई हैं। उनमें से एक राशि है – मकर। पौष मास में 14 जवनरी को सूर्य मकर राशि पर आ जाता है। इस दिन को संक्रान्ति कहते हैं। इस दिन से सूर्य उत्तर की ओर झुकता दिखाई देता है। दिन बड़े और रातें छोटी होनी प्रारंभ हो जाती हैं।
उजाला भरता है यह पर्व : अंधकार पर प्रकाश और जाड़े पर धूप की विजय पाने की यात्रा इसी दिन से शुरू हो जाती है। इसे सूर्य पर्व भी कहा जाता है। यह महोत्सव पारस्परिक स्नेह और मधुरता का प्रतीक है। इसीलिए इस दिन तिल और गुड़ बांटा जाता है। देश के विभिन्न प्रांताें में मकर संक्रान्ति का पर्व अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है।
कहीं पोंगल की धूम : तमिलनाडु में यह दिन पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन वहां गांवों के नज़ारे देखने लायक होते हैं। अत्यन्त उत्साह और उमंग के वातावरण में यह पर्व मनाया जाता है। पोंगल का अर्थ है सूर्य की किरण। अब इसका अर्थ पोंग यानि उफान से लिया जाता है। पोंगल के दिन दूध में चावल-दाल डालकर पकाये जाते हैं। पकाते समय इस पर सूर्य की रोशनी पड़ती रहे इसलिए इसे घर के खुले आंगन में पकाया जाता है। उफान आने पर परिवार के सभी सदस्य -’’पौंगालो-पौंगालो, पालू पेंगिंटूला’’ कहते हुए उबलते दूध का अभिनन्दन करते हैं। इस दिन यहां पशुओं की पूजा करने की भी परम्परा है। शाम को कहीं-कहीं बैलों की लड़ाई का लोग आनंद उठाते हैं।
आसमान की ऊँचाई दिखाते हैं पतंग : सूर्य का पर्यायवाची पतंग भी है। पतंग सूर्य के आकाश में ऊँचा उड़ाने के उपलक्ष में कहीं-कहीं पतंग का उत्सव भी मनाया जाता है। मकर संक्रन्ति पर राजस्थान, गुजरात और उत्तर भारत के कई इलाकों में पतंगें उड़ा कर भरपूर आनन्द लूटा जाता है। सुबह से शाम तक आकाश में रंग-बिरंगी पतंगों का मेला सा लग जाता है। इस दिन कई स्थानों पर पतंग प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। कन्याओं एवं अविवाहित बालिकाओं को माता-पिता, भाई-भाभी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, दादा-दादी आदि द्वारा विशेष रूप से उपहार देकर स्नेह प्रदर्शित किया जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन तिल, आटे एवं मूंग की दाल के लड्डू तथा फल बड़े प्रेम भाव से पड़ोसियों एवं सम्बन्धियों में बांटे जाते हैं। बालिकाएं एवं महिलाएं मेहन्दी रचाकर संक्रान्ति पर्व का स्वागत करती है।
सामाजिक परम्पराओं का दिग्दर्शन : यह पर्व उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में ’’खिचड़ी’’ के नाम से प्रसिद्ध है। संक्रान्ति के दिन प्रातः यहां मूंग-चावल की खिचड़ी पकाई जाती है। वे लोग इस दिन स्नान, पूजा करके खिचड़ी खाते हैं और खिचड़ी और तिल का दान करते हैं। महाराष्ट्र में नवविवाहित स्ति्रयां अपनी पहली संक्रान्ति को तिल का तेल, कपास और नमक का दान सौभाग्यवती स्ति्रयों का देती है। वे सौभाग्यवती स्ति्रयां भी अपनी सखियों को हल्दी-रोली, तिल-गुड़ प्रदान करती हैं।
पुण्य संचय के अवसर देता है मकर संक्रमण : इस पर्व में बंगाल में स्नान-पूजन करके तिल का दान किया जाता है। पंजाब से यह पर्व ’’लोहड़ी’’ के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। गंगासागर में एक भव्य मेला भी लगता है। असम के अंचलों में खिल उठता है बिहू नृत्य। गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा और दूसरे क्षेत्रों में भी खिचड़ी दान करने के साथ चिड़ियाओं को तिल, चावल और दाल खिलाने की परम्परा है। सभी जगह सूर्योदय से पूर्व स्नान किया जाता है। देश की सभी पवित्र नदियों में मुंह अंधेरे नहाते हैं।
सूर्य रश्मियां देती हैं जन-जन को सुकून : विभिन्न परम्पराओं के रूप में मनाये जाने वाली मकर संक्रान्ति का सबसे बड़ा आधार है सूर्य। इसे सूर्य पूजा का पर्व भी कहा जाता है। मकर संक्रान्ति भ्रातृत्व भावना व आपसी स्नेह का प्रतीक है। इस दिन पारस्परिक वैमनस्य भुलाकर लोग आपस में भाई-चारे से मिलते है और सूर्य की भांति देश की सौभाग्य वृद्धि की मंगल कामना करते हैं। यों देखा जाए तो मकर संक्रांति है तो एक पर्व लेकिन सूर्य की सहस्र रश्मियों की तरह यह अनेक रूपों और परंपराओं के साथ इस प्रकार मनाया जाता है कि भारतीय संस्कृति में अनेकता में एकता और भास्कर के समान लोक जीवन में चमक-दमक लाने का यह पैगाम देता है।
– अनिता महेचा