भाषा के बिना राजस्थानी संस्कृति की कल्पना बेमानी
Udaipur. राजस्थान एसोसिएशन ऑफ नोर्थ अमेरिका (राना) के उपाध्यक्ष एवं यूरोलोजिस्ट डॉ. शशि शाह ने कहा कि राजस्थानी भाषा राजस्थान के लोगों की मातृभाषा होने के साथ राजस्थानी संस्कृति की पहचान है। भाषा लोगों को बांधे रखती है। भाषा ही संस्कृति को आगे ले जाती है। भाषा के बिना राजस्थानी संस्कृति की कल्पना ही बेमानी है।
वे यहां डॉ. मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित वृहत् संवाद में मुख्यक अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। डॉ. शाह ने कहा की आज महात्मा गांधी का शहीद दिवस है गांधीजी को मातृभाषा से बहुत लगाव था। राजस्थानी हमारी मातृभाषा है और हिन्दी राष्ट्रतभाषा। डॉ. शाह ने बताया कि राजस्थानी को आठवीं अनूसूची में जोड़ने हेतु 25 अगस्त 2003 को विधानसभा में संकल्प प्रस्ताव पास किया गया जिसकी भूमिका 5 जुलाई 2003 के राना के न्यूयार्क के मेमोरेन्डम से बनी थी। डॉ. शाह ने कहा कि 30 मार्च को न्यूयार्क में भी राजस्थान दिवस मनाया जाएगा।
व्हा इट हाउस में दिवाली उत्सव शुरू करवाने में डॉ. शशि शाह एवं राना की सक्रिय भूमिका रही। राजस्थानी भाषा सम्मेलन जयपुर 2006 में डॉ. शाह की भूमिका सक्रिय रही। संचालन करते हुए राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रदेश महामंत्री डॉ. राजेन्द्र बारहठ ने कहा कि आठवीं अनुसूची में जुड़ने से प्रदेश के बच्चों को राजस्थानी तृतीय भाषा के रूप में लेने की सुविधा मिल जाएगी। भारतीय प्रशासनिक सेवा में भी हिन्दी अंग्रेजी के अलावा राजस्थानी भी माध्यम होगा। संवाद में गांधी समृति के सुशील दशोरा, साहित्यकार डॉ. ज्योति पुंज, शकुन्तला सरूपरिया, डॉ. वन्दना जोशी, चांदपोल नागरिग समिति के अध्यक्ष तेजशंकर पालीवाल, वरिष्ठक नागरिक मंच के सोहन लाल तम्बोली, शिक्षाविद् बसन्तिलाल कुकडा, गोपाल राजावत, नितेशसिंह आदि ने भाग लिया। धन्यवाद ट्रस्ट सचिव नंदकिशोर शर्मा ने दिया।