प्राचीन भारतीय आर्थिक चिंतन पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
Udaipur. राष्ट्रीतय संस्कृत संस्थान नई दिल्ली के कुलपति मुख्य अतिथि राधावल्लभ त्रिपाठी ने सार रूप में वैकल्पिक, आर्थिक चिन्तन के रूप में वित्त दर्शन के नये आयाम का प्रतिपादन करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में पुरूषार्थ चतुष्टय में मान्य अर्थ की आज के अर्थ प्रधान युग में काफी प्रासंगिकता व समसामयिकता है।
वे मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय एवं राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर के तत्त्वावधान में प्राचीन भारतीय आर्थिक चिन्तन : सनातन सन्दर्भ विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीेय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उदघाटन समारोह में चिन्तन, मनन एवं प्रतिष्ठान को लेकर सुन्दर देश विदेश कनाडा, चीन, भूटान वियतनाम से आये संस्कृत विषय विशेषज्ञों ने भी विचार व्य्क्ते किए। पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय उज्जयिनी के कुलपति ने वक्तव्य में अर्थ परक अर्थाजन करने की जीवन यापन कला एवं शैली पर प्रचुर प्रकाश डाला।
सम्मेलन की मुख्य प्रवर्तक राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर की अध्यक्ष सुषमा सिंघवी ने जीवन में अर्थ की महत्ता एवं धन अपरिग्रहपूर्वक संयत उपयोग पर बल डाला। वहीं अधिष्ठाता प्रो. शरद श्रीवास्तव ने अर्थ पर विचार व्यकक्तं किए। मुख्य वक्ता की भूमिका में धर्म, दर्शन, संस्कृत, संस्कृति, ज्ञान एवं विज्ञान के सचेता प्रचेता के रूप में डॉ. दयानन्द भार्गव ने श्री व लक्ष्मी के अन्तर के साथ अपने सारगर्भित वक्तव्य में समग्र जीवन दर्शन का सार सत्यं शिवं सुन्दरं के त्रिक् में समाहारित कर गीता के ज्ञान, कर्म एवं भक्ति योग पर प्रकाश डाला। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. इन्दवर्धन त्रिवेदी ने अर्थोपार्जन, अर्थ संचालन एवं अर्थ के विक्रय को सन्तुलित सामंजस्य को समसामयिक एवं प्रासंगिक बतलाया।
अर्थ एवं अर्थ चिन्तन पर आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में मुख्य समन्वयक प्रो. नीरज शर्मा सुदूर देशों से आये हुए संस्कृतविज्ञों के द्वारा शताधिक शोधपत्रों के वाचन की जानकारी प्रदान की। संस्कृत विभाग के सह-आचार्य डॉ. अंजना पालीवाल ने भावाभिव्यक्ति समन्वित कृतज्ञता ज्ञापन करते हुए धन्यवाद दिया।