नगर नियोजन एवं नागरिकता पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला
Udaipur. उदयपुर का वर्ष 2021 का बनाया गया मास्टार प्लान बिल्कुकल भी सही नहीं है। अभी विद्यमान प्लान में 2011 की अनुमानित जनसंख्या 5.99 लाख आंकी गई थी जो नए प्लान में 5.75 लाख बताई गई है। इसी प्रकार पूर्व में स्वीकृत प्लान में वर्ष 2022 की आबादी 8.30 लाख आंकी गई जो प्रस्तावित प्लान में 7.59 लाख आंकी गई है।
ये विचार सेवानिवृत्त् अधीक्षण अभियन्ता ज्ञान प्रकाश सोनी ने व्य क्त2 किए। वे वे विद्या भवन सोसायटी आयोजित ’शहरीकरण एवं नागरिकता’ विषयक दो दिवसीय सेमीनार को संबोधित कर रहे थे। अपने प्रस्तुतिकरण में उन्होंणने सन् 2003 में स्वीकृत मास्टर प्लान और सन् 2013 के ड्राफ्ट मास्टर प्लान का तुलनात्मोक अध्यायन किया। उन्होंने बताया कि एक तरफ झीलों के जलांचल में निर्माण निषेध क्षेत्र प्रस्तावित है फिर भी कोडियात ए व बी गांव को नये मास्टर प्लान के क्षेत्र में ले लिया गया है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या को भी नये मास्टर प्लान बनाने का एक कारण बताया गया है लेकिन इसी प्लान की तालिका 11 के अनुसार सन् 2000 में जहां 8,12,507 पर्यटक उदयपुर आये थे वहां सन् 2009 में 7,12,312 व 2010 में 7,55,313 पर्यटक ही उदयपुर आए। इस तरह या तो पर्यटकों की संख्या का आंकड़ा गलत है या फिर मास्टर प्लान को नया बनाने का आधार अनुचित है। मास्टर प्लान जिन आंकड़ों पर आधारित है उन मे से कई आंकड़े पुराने मास्टर प्लान से ज्यों के त्यों नकल कर लिए गए है। उदाहरण के लिए शहरकोट के भीतर के क्षेत्र में 2003 के मास्टर प्लान में 445 व्यक्ति प्रति एकड़ का घनत्व बताया गया था और 2013 के मास्ट3र प्लान में भी इसी आंकड़े को दोहरा दिया गया है जबकि शहरकोट के अंदर दुमंजिले मकान तिमंजिले हो चुके हैं। आबादी में पिछले 10 वर्षों में निश्चित तौर वृद्धि हुई है और शहरकोट के अंदर का क्षेत्रफल वही का वही है तो जनसंख्या घनत्व बढ़ना निश्चित है।
अस्पतालों के मामले में स्थिति और भी गंभीर है क्योंकि 2003 के मास्टर प्लान में जनरल हॉस्पिटल में 1585 पलंग व आयुर्वेदिक अस्पताल में 165 पलंग थे जो 2013 के प्रस्तावित प्लान के अनुसार घटकर क्रमशः 1146 व 75 पलंग ही रह गये है। इसी तरह शहर में 2003 के मास्टर प्लान के अनुसार 45 निजी चिकित्सालय व 550 पलंग थे और 2013 के प्रस्तावित मास्टर प्लान में भी 45 निजी चिकित्सालय व 550 पलंग है। आश्चर्य यह है कि पिछले 10 वर्षों में या तो एक भी निजी चिकित्सालय नया नहीं बना इसे सही मानें या इन आंकड़ों को गलत मानें। शिक्षा क्षेत्र में 2003 के मास्टर प्लान में 13 महाविद्यालय बताये गये थे और नये प्रस्तावित मास्टर प्लान में भी 13 ही महाविद्यालय बताये गये हैं। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि नये मास्टर प्लान को बनाने वाले कन्सलटेंट ने आंकड़े जुटाने के वांछित प्रयास नहीं किये और विभागीय स्तर पर भी इसकी कोई जाँच किसी भी कार्यालय में नहीं हुई। पुराने मास्टर प्लान को स्वीकृत करते समय जो प्रस्तावना मुख्य नगर नियोजक ने लिखी है। उसके अनुसार उस समय 326 आपत्तियां/सुझाव प्राप्त हुए थे। जिसमें से सिर्फ 43 सुझाव जो अधिकांशतः नगर विकास प्रन्यास द्वारा सुझाये गये थे उन्हें ही स्वीकृति योग्य पाया गया शेष पर कोई कार्यवाही अपेक्षित नहीं पायी गयी। इस आधार पर यह विचारणीय है कि प्रस्तावित मास्टर प्लान पर जो सुझाव मांगे जा रहे है उनका क्या हश्र होने वाला है। यहां राजस्थान नगरीय विकास अधिनियम 1959 की धारा तीन पर यदि ध्यान दें तो राजकीय मंशा यह है कि सभी इच्छुक व्यक्ति अपने सुझाव दे सकें और इसके लिए आवश्यक हो तो 30 दिन की समय सीमा को आगामी 30 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
विधायक गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि यूआईटी व्येवसाय का स्थाोन बन गया है। गरीब, साधारण नौकरीपेशा व्यिक्ति के लिए मकान का निर्माण दिवास्व प्नथ बन गया है। किसानों की कम दरेां पर जमीनें लेकर अधिक दर पर बेच पैसा कमा रही है। उन्हों ने कहा कि जनसहभागिता के बिना कोई योजना सफल नहीं हो सकती। जनता की योजना निर्माण के पश्चात् सुझावों के लिए नहीं वरन योजना निर्माण में भागीदार होनी चाहिए। शहर के मास्टर प्लान के संदर्भ में कटारिया ने कहा कि उदयपुर की सड़कें यहां के यातायात को सहन करने की स्थिति में नहीं है। शहर के चौराहे ठीक नहीं है। उदयपुर की सिवरेज, जल निकासी और पार्किंग व्यवस्था भी ठीक नहीं है। प्रशासनिक लापरवाही के कारण अतिक्रमण बढ़ रहा है। भूमाफियाओं के दबाव में विश्वविद्यालय मार्ग से पुलां तक 100 फीट रोड़ सीधी की जगह सर्पाकार बन गई। विभागों में आपसी समन्वय नहीं होने के कारण उदयपुर की सड़कें बदहाली का शिकार है।
महापौर रजनी डांगी ने कहा कि मास्टर प्लान में जनता के सुझावों के लिए 15 दिन का समय बढ़ाया जा सकता है। मास्टर प्लान पर चर्चा करते हुए महापौर ने कहा कि पर्यटक उदयपुर के हेरिटेज, झीलें आदि को देखने आते है, अतः निर्माण एवं सुधार में यहां का जो हेरिटेज लुक है उसे बनाये रखने की कोशिश की जानी चाहिए। शादी के गार्डन्स का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसकी जो व्यावहारिक कठिनाईया है उन्हें भी दृष्टिगत रखना चाहिए।
जिला आयोजना अधिकारी सुधीर दवे ने कहा कि जनसंख्या विस्तार से ज्यादा ग्रोथ शहरीकरण की है। उदयपुर में पिछले एक दशक में 200 प्रतिशत वाहनों की संख्या बढ़ी है। मास्टर प्लान में जनभागीदारी होनी चाहिए। और जनता इसे अपना प्लान माने वैसी संकल्पना बननी चाहिए। अध्यक्षता करते हुए विद्याभवन के उपाध्यक्ष अजय एस. मेहता ने कहा कि शासन में नैतिक नेतृत्व होना चाहिए। 74वें संविधान संशोधन में प्रदत्त शक्तियां मिल भी जाए तब भी नैतिकता व मूल्यों का अभाव रहा तो लाभ नहीं मिलने वाला। मेहता ने कहा कि शहरीकरण बढ़ने से शासन पर जो भार बढ़ रहा है उसमें नागरिक और नागरिक संस्थाएं किस तरह मददगार हों इस पर सोचने की जरूरत है। उन्होंने प्रश्न किया कि जिन सामान्य लोगों की बातें योजनाओं में की जाती है? क्या उनका योजना के निर्माण में गरिमामय भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है?
संगोष्ठी के संयोजक पॉलिटेक्निक महाविद्यालय के प्राचार्य अनिल मेहता ने संगोष्ठी की मुख्य सिफारिशें निम्तल प्रकार बतलाई :
झीलों का संरक्षण : निर्माणों को रोकना लेकिन फतहसागर के किनारे कम्पनी विशेष को होटल बनाने की मंजुरी देना चिन्ताजनक है। बड़ी रोड़ पर सरकारी कार्यालय शिफ्ट करने से यातायात जन दबाव बढ़ेगा परिणामतः झीलों पर पर्यावरणीय संकट होगा।
छोटे तालाबों के संरक्षण का मास्टर प्लान में उल्लेख है लेकिन सभी छोटे तालाबों के नामों का उल्लेख नहीं है तथा छोटे तालाबों में पानी लाने व ले जाने वाले प्राकृतिक नालों का जिक्र नहीं है।
सेटेलाईट पशु चिकित्सालय बनने चाहिए मौजुदा पशु चिकित्सालय नहीं हटना चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम बनाया जाए। राष्ट्रीय आपदा विकास प्राधिकरण की अनुशंषाओं व कानूनी प्रावधानों का मास्टर प्लान में स्थान नहीं है। शहर में मौजूदा लगभग 100 पार्कों में कई कूड़ेदान बन गए है। इन्हें विकसित कर हरियाली बढ़ायी जाए। गुलाब बाग का स्वरूप नहीं बदले। भूमाफियाओं के दबाव में आर.सी.ए. तथा विद्याभवन से सड़कें नहीं निकाली जाए। गुलाब बाग, आरसीए एवं विद्याभवन शहर के आक्सीजन सिलेण्डर है। आयड़ नदी के किनारे सुविकसित, व्यवस्थित शवदाह गृहों का निर्माण हो। महाराणा भूपाल चिकित्सालय में ट्रोमा व आपात चिकित्सा वार्ड सबसे आगे हो ताकि मरीज सीधे पहुंच सके। शहर का एक स्वरूप निश्चित हो। एक रंग के मकान हो और भवनों का बाहरी स्वरूप हेरिटज लुक लिए हों। सिवरेज व्यवस्था का पुख्ता प्रावधान होना चाहिए। सड़कों के किनारे पेड़ लगे। झीलों के प्राकृतिक किनारे समाप्त न हो इनकों बचाने के प्रावधान हो। मास्टर प्लान में सम्मिलित गांवों के लोगों की राय जानी जाए। सिवरेज व्यवस्था का पुख्ता प्रावधान होना चाहिए। सड़कों के किनारे पेड़ लगे। गाजरघास का उन्मूलन हो। झीलों के प्राकृतिक किनारे समाप्त न हो इनकों बचाने के प्रावधान हो। वर्तमान में शहर में स्थित जनसुविधाओं को अन्यत्र स्थानान्तरित नहीं किया जाए। नई व अतिरिक्त सुविधाऐं विकसित की जाए।
राजस्थान आवास विकास लि. के प्रबंध निदेशक वी. के. दाधीच एवं जयपुर स्थित वरिष्ठ नगर नियोजक एस. के. विजयवर्गीय ने राजस्थान सरकार की अफोर्डेबल हाउसिंग पोलिसी के बारे में बतलाया। नगर के वरिष्ठ वास्तुविद् बी. एल. मंत्री ने कहा कि मास्टर प्लान होता कुछ है और क्रियान्वयन में दिखता कुछ और है। विद्याभवन के अध्यक्ष रियाज तहसीन ने कहा कि टाउन प्लानर को दूरदृष्टि रखनी चाहिए। चर्चा में एस.के. वर्मा, डॉ. सतीश शर्मा, डॉ. आर. एम. लोढ़ा, एच. आर. भाटी, प्रो. आर. एस. राठौड़, अनिल नेपालिया, एस. एल. गोदावत, भंवर सेठ, आर. सी. कविया डॉ. अरूण जकारिया, डॉ. विनया पेण्डसे, प्रो. एम. पी. शर्मा तथा डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट के नन्दकिशोर शर्मा ने भाग लिया। धन्यवाद विद्याभवन सोसायटी के व्यवस्था सचिव एस.पी. गौड़ ने दिया।